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________________ अपभ्रंश स्फुट-साहित्य ३६९ "इणि परि सिरि उवएस माल कहाणय । तव संजम संतोस विषय विज्जाइ पहाणय । सावय संभरणत्थ अत्यपय छप्पय छंदिहिं । रयण सींह सूरीस सोस एभणइ आणदिहिं॥ अरिहंतआण अणु दिण, उदय धम्म मूल मत्थइ हउं। भो भविय भत्ति सत्तिहि सहल सयल लच्छि लीला लहउ ॥ ८१।। श्री कामता प्रसाद जैन ने इस कृति की रचना का काल १३ वीं शताब्दी माना है।' गय-सुकमाल-रास यह ग्रन्थ अप्रकाशित है। हस्त लिखित प्रति जैसलमेर के बड़े ज्ञान भंडार में प्राप्त है। प्रति १४ वीं शताब्दी की लिखी हुई है। __ ग्रन्थ के रचयिता संभवतः श्री देल्हण हैं। श्री देवेन्द्र सूरि के कथनानुसार इसकी रचना की गई। श्री अगरचंद नाहटा इनका समय वि० सं० १३०० के लगभग मानते हैं। अतएव ग्रन्थ रचना का काल भी इसी समय के आसपास मानना पड़ता है। . सिरि देविंद सूरिदह वयणे। खमि उवसमि सहियउ । गय सुकुमाल चरित्तू, सिरि बेल्हणि रइयउ ॥३३॥ प्रस्तुत रास में कृष्ण भगवान् के छोटे सहोदर भाई गज सुकुमाल मुनि का चरित्र वर्णित है। भाषा परिज्ञान के लिए निम्नलिखित उद्धरण देखिये-- तर सायर-उयकंठे वारवइ पसिद्धिय । वर कंचण धण धनि वर रयण समिद्धिय । वारह जोयण जसु वित्थारू निवसइ सुन्दर गुणिहि विसालू । बाहत्तरि कुल कोडि विसिट्ठो अन्नवि सुहड रणंगणि दिट्ठो ॥ नयरिहि रज्जु करेई नहि कन्हु नरिंदू । नरवइ मंति सणाहो जिव सुरगणि इंदू ॥ संख चक्क गय पहरण धारा। १. हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास, पृ० ३१ । २. गय-सुकुमाल रास, श्री अगर चन्द नाहटा, ___ राजस्थान भारती, वर्ष ३, अंक २, पृष्ठ ८७ । ३. वही, पृ० ९१
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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