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अपभ्रंश-साहित्य कर नेमिनाथ की स्तुति है और अन्तरंग रास में प्रातःकाल पाठ करने योग्य स्तुति है। इनके अतिरिक्त कुछ अन्य रास-ग्रन्थों का विवरण प्राचीन गुर्जर काव्य संग्रह में मिलता है।
जंबू स्वामि रासु' कृति के प्रारम्भ में कृति का नाम “जंवू सामि चरिय" दिया है किन्तु समाप्ति "इति श्री जंब स्वामि रासः" इन शब्दों से होती है। कृति की रचना महेन्द्र सरि के शिष्य धर्म सूरि ने वि० सं० १२६६ में की थी। कृति में पद्यों की संख्या ४१ है ।
कृति में कथानक वही है जो जंबू स्वामी के चरित में पहले वर्णन किया जा चुका है। जंबू स्वामी के चरित्र और धर्म की दृढ़ता का प्रतिपादन ही कवि का लक्ष्य था। ग्रन्थ की समाप्ति संघ की मंगल कामना से होती है।
रेवंत गिरि रास यह विजय सेन सूरि कृत एक छोटी सी रचना है । कृति चार कडवकों में विभक्त है। कवि ने इस ग्रन्थ की रचना वि० सं० १२८८ में की थी। कृति में सोरठ देश में रेवंत गिरि पर नेमिनाथ की प्रतिष्ठा के कारण रेवंत गिरि की प्रशंसा और नेमिनाथ की स्तुति की गई है।
कवि की कविता का उदाहरण देखिये। पर्वत का वर्णन करता हुआ कवि कहता है--
"जाइ कुंदु विहसंतो जं कुसुमिहि संकुलु । दीसइ दस दिसि दिवसो किरि तारामंडलु। मिलिय नवल वलि दल कुसुम झलहालिया। ललिय सुर महि दलय चलण तल तालिया। गलिय थल कमल मयरंद जल कोमला। विउल सिलवट्ट सोहंति तहि संमला। (पृ० ३)
उवएस माल कहाणय छप्पय यह श्री विनय चन्द्र कृत ८१ छप्पय छन्दों की कृति है । इसमें प्राचीन तीर्थंकरों एवं धार्मिक पुरुषों का उदाहरण देते हुए धर्माचरण का उपदेश दिया गया है । कृति की समाप्ति निम्नलिखित छप्पय से होती है--
१. प्राचीन गुर्जर काव्य संग्रह, पृ० ४१-४६ । २. देखिये पीछे सातवाँ अध्याय, अपभ्रंश खंड-काव्य, पृ० १४७ ३. प्राचीन गुर्जर काव्य संग्रह, पृ० १-७ । ४. वही, पृ० ११-२७ । .
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