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अपभ्रंश-साहित्य
कंस नराहिव कय संहारा । जिणि चाणउरि मल्लु वियारिउ
जरासिंघु बलवन्तउ धाडिउ ॥ तासु जणउ वसुदेवो वर रूव निहाणू। महियलि पयड पयावो रिउ भड तम भाणू ॥'
समरा रासु इस कृति की रचना अंबदेव ने वि० सं० १३७१ में की। इस में संघपति देसल के पुत्र समरसिंह की दानवीरता का वर्णन किया गया है । उसी वर्ष इसने शत्रुजय तीर्थ का उद्धार किया था। तीर्थ का सुन्दर भाषा में वर्णन मिलता है। कृति ग्यारह "भाषाओं में विभक्त है। यह रास-ग्रन्थ रास-साहित्य के विषय पर भी प्रकाश डालता है । इस रास ग्रन्थ से प्रतीत होता है कि रास ग्रन्थ का नायक कोई तीर्थकर या पौराणिक महापुरुष हो, यह आवश्यक न था। एक दानी और श्रेष्ठी भी इस का नायक हो सकता था । अर्थात् धार्मिक विषय के अतिरिक्त रास में किसी दान-वीर की प्रशंसा भी हो सकती थी।
कवि की कविता का एक उदाहरण देखिये-- तीर्थ यात्रा के जाने वाले यात्रियों का वर्णन इस प्रकार मिलता है
वाजिय संख असंख नादि काहल दुडुदुडिया। घोड़े चडइ सल्लार सार राउत सींगडिया। तउ देवालउ जोत्रि वेगि घाघरि र झमकइ । सम विसम नवि गणइ कोइ नवि वारिउ थक्कइ ॥ (पृ. ३२)
श्री नेमिनाथ फागु यह राजशेखर सूरि कृत २७ पद्यों की एक छोटी सी कृति है । रचना काल के विषय में कोई निश्चित प्रमाण नहीं मिलता। इस काल की अन्य रचनाओं के समान इसका काल भी संभवत: १३ वीं-१४ वीं शताब्दी है।
कृति में नेमिनाथ का चरित्र वणित है । कवि की कविता का उदाहरण देखिये । नारी का रूप वर्णन करता हुआ कवि कहता है
"अह सामल कोमल केशपास किरि मोर कलाउ । अद्धचंद सम भालु मयणु पोसइ भडवाउ। वंकुडियालीय भुंहडियहं भरि भवणु भमाडइ।
लाडी लोयण लह कुडलइ सुर सग्गह पाडइ ॥ १. वही, पृ० ८८। २. प्राचीन गुर्जर काव्य संग्रह, पृ० २७-३८ । ३. वही, पृ० ८३-८६ ।