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________________ अपभ्रंश कथा-साहित्य ३५१ कथाओं से युक्त है । यह स्वामी सामन्तभद्र की सुप्रसिद्ध कृति 'रत्त करण्ड' का विस्तृत व्याख्यान है । यह एक आचार ग्रन्थ है । ग्रन्थ में उदाहरण स्वरूप प्रसंग प्राप्त व्रतोपासक व्यक्तियों के कथानक दिये गये हैं । मंगलाचरण से ग्रन्थ का आरम्भ कर कृतिकार २४ तीर्थंकरों का स्तवन करता है । अपने से पूर्व के अनेक प्रसिद्ध कवियों का स्मरण कर स्वयं ग्रंथ लेखन का कारण निम्नलिखित शब्दों में प्रकट करता है- चहु चउमुहु व पसिद्धु भाइ, कइराउ सयंभु सयंभु नाई । तह पुप्फयंतु निम्मुक्क दोसु, वणिज्जद किं सुअए वि कोसु । सिरि हरस कालियास इ सार, अवरवि को गणई कइत्तकार । १.२ इन प्रसिद्ध कवियों के होते हुए भी कवि स्वयं काव्य में प्रवृत्त क्यों हुआ-तहवि जिणद पय भत्तियाए, लइ करमि किपि निय सत्तियाए । जइ करइ समुग्गम तमविवक्खु, तो किण्ण उयउ गयणम्मि रिक्खु । जs fares सुर पिउ पारियाउ, ता इयरु म फुल्लउ भूमिजाउ । १.२ कवि परम्परा के अनुसार कृतिकार ने सज्जन दुर्जन स्मरण (१.३) भी किया है । प्रत्येक सन्धि की पुष्पिका में कृतिकार ने अपने नाम का निर्देश किया है । इन पुष्पिकाओं से यह भी स्पष्ट प्रतीत होता है कि लेखक ने इस ग्रन्थ का निर्माण धार्मिक भावना से प्रवृत्त होकर ही किया था । ' ग्रन्थ में एक स्थल पर लेखक ने अनेक अपभ्रंश छन्दों का उल्लेक किया है-छंद णियारणाल आवलियाह, चच्चरि रासय रासह ललियाह । वच्छु अवच्छू जाइ विसेसह, अडिल मडिल पद्धडिया अंसहि । दोहय उबदोहय अवभंसह, दुबई हेला गहु वगाहह । भुवय खंडउवखंडय घर्त्ताह, सम विसमद समेहि विचित्र्त्ताह । १२.३ कृतिकार ने स्वयं भी आरणाल, दुवई, जंभिट्टिया. उवखंडयं, गाथा, मदनावतार आदि छन्दों का प्रयोग किया है। प्रधानता पद्धडिया छन्द की ही है । स्थान स्थान पर विषय स्पष्ट करने के लिए 'उक्तं च' 'तद्यथा' इत्यादि शब्दों द्वारा १ - इय पंडिय सिरि चंद कए, पर्याडय कोऊहल सए, सोहण भावपवत्तए, परिऊसिय वुह चित्तए, दंसण कहरयण करंडए, मिछत्त पऊहि तरंडए, कोहाइ कसाई विहंडए, सत्यम्मि महागंण संडए, देउ गुरु धम्मायरणो गुण दोस पयासणो, जीवाइ वर तव्व णिण्णय करणो णाम पठमो संघी परिछेऊ 'समत्तो ॥ संधि१॥
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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