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________________ ३५० अपभ्रंश-साहित्य किस लिये आये हो ? हंस के वचन सुन उल्लू बोला-मैं उत्तम कुल में उत्पन्न हुआ हूँ। मुझ पर सब का अनुग्रह है । मैं राजा के पास से आया हूँ। सब सामंत मेरे वशवर्ती हैं और वे मेरे प्रति प्रेम से मेरा ही कहा करते हैं। क्रीड़ा से भ्रमण करता हुआ, राजाओं के साथ, मैं भी यहां तुम्हारे पास आ गया। इन वचनों को सुन हंस प्रसन्न हुआ और वह उसके पैरों में गिर पड़ा । अनन्तर उल्लू ने अपना मायावी रूप प्रकट किया। इन सब कथाओं का उद्देश्य मनुष्य हृदय में निर्वेद भाव जागृत कराना है। इस का आभास ग्रन्थारम्भ में ही मिल जाता है "पणवेप्पिणु जिणु सुविसुद्ध मई। चितइ मणि मुणि सिरिचंदु कई । संसार असार सव्वु अथिए । पिय पुत्त मित्तु माया तिमिरु । संपय पुणु संपहे अणुहरइ । खणि दोसइ खणि पुणु ऊसरइ । सु विणय समु पेम्मु विलासविही। रेहुवि खणि भंगरु दुक्ख तिही। जोव्वणु गिरि वाहिणि वेय गउ । लायण्णु वण्णु कर सलिल सउ। जीविउ जल बब्बुय फेण णिहु । हरि जालु वरज्जु अवज्ज गिहु' ।" ग्रन्थ की भाषा में पदयोजना संस्कृत प्राकृत के ढंग की है जैसे-"एक्केण कय सागएण हंसे पुच्छिउ” (एकेन कृत स्वागतेन हंसेन पृष्टम्) । ग्रन्थ में वंशस्थ, समानिका, दुहडउ, मालिनी, पद्धडिया, अलिल्लह आदि छन्दों का प्रयोग किया गया। इन छन्दों में संस्कृत के वर्णवृत्तों का भी कवि ने प्रयोग किया है किन्तु इनके प्रयोग में भी कवि ने नवीनता उत्पन्न कर दी है। उदाहरण के लिये--- "विविह रस विसाले। जेय कोऊ हलाले। ललिय वयण माले। अत्थ संदोह साले। भवण-विदिद-णामे । सव्व-बोसो वसामे । इह खल कह कोसे । सुन्दरे दिण्ण तोसे ॥" यह संस्कृत का मालिनी छन्द है। इसमें प्रत्येक पंक्ति में ८ और ७ अक्षरों के बाद यति के क्रम से १५ अक्षर होते हैं। कवि ने प्रत्येक पंक्ति को दो भागों में विभक्त कर यति के स्थान पर और पंक्ति की समाप्ति पर अन्त्यानुप्रास (तुक) का प्रयोग कर के छन्द को एक नवीन रूप दे डाला। रत्न करण्ड शास्त्र यह ग्रन्थ भी अप्रकाशित है। इसकी दो हस्तलिखित प्रतियाँ आमेर शास्त्र भण्डार में विद्यमान हैं (प्र० सं० पृ० १६४-१६७) । यह भी श्रीचन्द्र कवि का २१ सन्धियों में लिखा हुआ ग्रन्थ है और कथा कोष के समान अनेक उपदेश प्रद धार्मिक और नैतिक १. कैटेलाग आफ संस्कृत एंड प्राकृत मैनुस्क्रिप्ट्स इन दि सी. पी. एंड बरार, पृ० ७२५ । २. वही, भूमिका पृ० ५० ।
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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