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________________ अपभ्रंश कथा - साहित्य ३४३ वर्तमान हैं । (प्र० सं० पृष्ठ १०८ - ११० ) हरिषेण ने ग्यारह सन्धियों में इस ग्रन्थ की रचना की है । सन्धियों में कवकों की कोई निश्चित संख्या नहीं । कम से कम १७ कडवकों की १० वीं और अधिक से अधिक २७ कडवकों की ११ वीं सन्धि है । प्रत्येक सन्धि के अन्तिम घत्ता में किसी न किसी रूप में ग्रन्थकार ने अपने नामका प्रयोग किया है । सन्धि की पुष्पिकाओं में भी लेखक का नाम मिलता है । ' लेखक के पिता का नाम गोवर्धन था । गोवर्धन मेवाड़ के सिरि उजपुर में धक्कड़ वंश में उत्पन्न हुआ था । हरिषेण चित्तौड़ में रहता था । कभी निज कार्य वश वहां से अचलपुर गया और वहीं उसने इस ग्रन्थ की रचना की । लेखक के गुरु का नाम सिद्धसेन था । कृति की रचना लेखक ने वि० सं० २०४४ में की थी । ग्रन्थ का आरम्भ कवि ने जिन स्तुति और गुरु वन्दना से किया है । आत्म नम्रता साथ कवि अनेक प्राचीन कवियों का स्मरण करता है । कवि अल्पज्ञ होते हुए भी काव्य रचना में प्रवृत्त होता है और उसे विश्वास है कि श्री जिनेन्द्र धर्मानुराग के कारण एवं अपने गुरु श्री सिद्धसेन के प्रसाद द्वारा नलिनी दल के शोभन सहवास मौक्तिकान्तिको प्राप्त करने वाले जल बिन्दु के सदृश, यह काव्य भी उन के संपर्क से छविमान होगा। इसी प्रसंग में कवि ने अपने से पूर्व जयराम की गाथा छन्दों में विरचित प्राकृत भाषा की धर्म-परीक्षा का निर्देश किया है । जिस से यह प्रतीत होता है कि कवि ने इस ग्रन्थ की रचना जयराम कृत धम्म परिक्खा के आधार पर की थी। जयराम की यह कृति अभी तक उपलब्ध नहीं हो सकी । * ४. ॐ नमः सिद्धेभ्यः ॥ १. इय धम्म (परि) परिक्खाए चउवग्गाहि ठिया चित्ताए, वह हरिसेण कयाए एयारसमो संधी परिच्छेउ समत्तो । २. इय मेवाड़ देसे जण संकुले, सिरि उजपुर णिग्गय धक्कड कुले । गोवद्धणु नामें उप्पत्तउं जो सम्मत्त रयण संपुत्तउं । तहो गोवद्वणामु पिय धणवइ, जा जिणवर मुणिवर पिय गुणवइ । ताइं जणिउं हरिसेणु णामें सुउ, जो संजाउ विवह कई विस्सुङ । सिरि चित्तउडु चएवि अचलउरहो, गुउ णिय कज्जें जिणहर पउरहो तहि छंदालंकार पसाहिय, धम्मपरिक्ख एह तें साहिय । ११.२६ ३. दो भिन्न भिन्न प्रतियों में ये उद्धरण मिलते हैं "विक्कम णिव परि वत्तिय कालए, गयए वरसि सहसेहि भवालए ।" "विक्कम णिव परिय कालइ, अव गय वरिस सइस चउतालए।" ध० प० ११.२७
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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