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अपभ्रंश-साहित्य बाधायें उपस्थित होने पर भी किस प्रकार उसने सदाचार की प्रतिज्ञा को निबाहा और परिणामतः उसे कौनसा फल मिला, इसका चित्रण प्रथमानुयोग में किया गया है।
जनसाधारण, जो अधिकांश उच्च शिक्षा से रहित होता है, प्रथम अनुयोग को ही महत्वशाली मानता है। जैन साहित्य में धर्म चर्चा को ही धर्म कथा और इतर कथाओं को विकथा कहा गया है। जैन विद्वानों ने लोकरुचि की ओर अधिक ध्यान दिया और समय-समय पर जन-साधारण में प्रचलित प्रसिद्ध कथानकों पर भी पर्याप्त ग्रन्थ लिखे।
व्रतकथाओं एवं धार्मिक अनुष्ठानों--दान, पूजा, शील इत्यादि के माहात्म्य प्रदर्शन में भी सैकड़ों कथायें लिखी गई। ___ अपभ्रंश में कथा-ग्रन्थों की परंपरा संस्कृत और प्राकृत से चली आ रही है। जैन साहित्य में सिद्धर्षि कृत उपमिति भव प्रपंच कथा (ई० ९०६), धन पाल कृत तिलक मंजरी आदि ग्रन्थ संस्कृत में लिखे गये । पादलिप्त सूरि की तरंग वती-तरंग लोला-, संघदास गणी की वसुदेव हिण्डी (छठी शताब्दी से पूर्व), हरिभद्र (८वीं शताब्दी सेपूर्व) की समराइच्च कहा, उद्योतन सूरि की कुवलयमाला कथा (वि० सं० ८३६), विजय सूरि की भुवन सुन्दरी कथा, महेश्वर सूरि की ज्ञान पंचमी कथा, जिनेश्वर सूरी का कथा कोश प्रकरणआदि अनेक ग्रन्थ प्राकृत में लिखे गये।
इससे पूर्व के अध्यायों में अपभ्रंश के भविसयत्त कहा, पज्जुण्ह कहा, पउम सिरि चरिउ आदि अनेक कथाओं का वर्णन अपभ्रंश महाकाव्यों और खंड काव्यों के अन्तर्गत किया जा चुका है। उनमें कथांश के साथ काव्यत्व की मात्रा भी पर्याप्त परिमाण में थी। इस अध्याय में कुछ ऐसे प्रमुख कथाग्रन्थों का निर्देश किया जायगा जिन में लेखक का उद्देश्य भिन्न-भिन्न कथाओं द्वारा किसी धार्मिक या उपदेशात्मक भावना का प्रचार करना रहा है। इनमें अनेक छोटी छोटी कथाओं का संग्रह है और उनमें काव्यत्व की अपेक्षा कथात्मक उपदेश वृत्ति अधिक स्पष्ट है । कथा द्वारा रोचकता उत्पन्न कर लेखक अपने मत की स्थापना करना चाहता है। __ जैन कवियों की एक विशेषता रही है कि उन्होंने लौकिक पात्रों को भी जैन धर्म का बाना पहिना दिया है । उनका रूप अपनी भावना के सांचे में ढाल लिया है । अनेक श्रृंगारिक आख्यानों को भी उपदेशप्रद बनाने का प्रयत्न किया है। इस प्रकरण में अपभ्रंश के प्रमुख कथा ग्रन्थों का विवरण दिया जाता है ।
धम्म परिक्खा (धर्म परोक्षा) यह ग्रन्थअप्रकाशित है । आमेर शास्त्र भण्डार में इसकी दो हस्तलिखित प्रतियाँ
१. अगरचन्द नाहटा, जैन कथा साहित्य, जैन सिद्धान्त भास्कर, भाग १२, किरण १। २. जैन कथा साहित्य के संस्कृत प्राकृत-ग्रंथों के लिए देखिए विन्टर नित्स
हिस्ट्री आफ इंडियन लिटरेचर, भाग २, पृ० ५०९ और आगे।