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अपभ्रंश कथा - साहित्य
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में मुख्य कथा के साथ पात्रों के पूर्वजन्म की कुनायें और अवान्तर कथायें भी मिलती जाती हैं । सब कथायें मिलकर पूर्णता को प्राप्त होती हैं । कुछ कथा - ग्रन्थ ऐसे भी मिलते हैं जिनमें भिन्न-भिन्न स्वतन्त्र कथाओं द्वारा धार्मिक उपदेश भावना या श्रावक एवं गृहस्थ के किसी सद्धर्म का व्याख्यात किया गया है ।
कथा - साहित्य जैन साहित्य का विशेष अंग रहा है । जैन कथाकारों का एक मात्र लक्ष्य सद्भाव, सद्धर्म और सन्मार्ग प्रेरक सत्कर्म का जनसमुदाय में प्रचार कर उसके नैतिक और सदाचारमय जीवन के स्तर को ऊँचा करना था । इस उच्चता द्वारा व्यक्ति लौकिक और पारमार्थिक सुख का भोक्ता वनता है । इन कथाकारों ने व्यक्ति के जीवनविकास के लिये सद्धर्म और सन्मार्ग के जिन प्रकारों का उल्लेख किया है वे सर्व साधारण के लिये हैं । कोई व्यक्ति, किसी धर्म का मानने वाला, किसी विचारधारा का, किसी देश और किसी जाति का हो, आस्तिक हो या नास्तिक, धनी हो या दरिद्र, सबके लिये यह मार्ग लाभप्रद और कल्याण कारी सिद्ध होता है। मानव के नैतिक-स्तर को ऊँचा उठाने की दृष्टि से इन कथाग्रन्थों का अधिक महत्व है ।
इन कथाग्रन्थों में अनेक प्रकार के पात्रों का, उनके आचार व्यवहार का, उनकी विचार परंपरा का और उनके बहुमुखी जीवन का चित्र होने से तत्कालीन समाज एवं तत्कालीन संस्कृति का आभास मिल सकता है और तत्कालीन समाज के इतिहास की रूपरेखा पर यत्किंचित् प्रकाश भी पड़ सकता है । इस दृष्टि से इस कथा - साहित्य का सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व भी है ।
कथा-कहानी का मानव जीवन में अत्यधिक महत्व है । कथा साहित्य चिरकाल से चला आ रहा है । वाङ्मय के प्रारम्भ से ही किसी न किसी रूप में साहित्य का यह अंग भी दिखाई देता है ।
भारतीय कथा-साहित्य में जैन कथा-ग्रन्थों का स्थान बड़ा ही महत्वशाली है । संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, हिन्दी, राजस्थानी, गुजराती, कन्नड़, तामिल आदि प्रधान भारतीय भाषाओं में जैन कथा साहित्य बिखरा पड़ा है। कई कई कथायें तो इतनी अधिक लोकप्रिय हुईं कि उनमें से प्रत्येक कथा पर एक ही भाषा में पचास-पचास जैन विद्वानों ने रचना कर डाली । परिमाण की दृष्टि से कई कथायें अति विस्तृत हैं कई लघुकाय । विषय की दृष्टि से यद्यपि जैन लेखकों का प्रधान लक्ष्य धार्मिक उपदेश रहा तथापि बुद्धिवर्धक, हास्य विनोद युक्त, कौतूहल मिश्रित, ऐतिहासिक आदि विविध प्रकार की कथाएँ भी उपलब्ध होती हैं । कथा साहित्य के कई संग्रह ग्रन्थों में १०० से २०० और ३६० तक कथाएँ संगृहीत हैं । लोक भाषा में रचित रास, चौपाई संज्ञक कई कथा ग्रन्थ जैन भण्डारों में सचित्र मिलते हैं जिनका कलात्मक मूल्य भी है। कई कथा ग्रन्थ अतीव सरस और महाकाव्य सदृश हैं ।
जैनागमों में वाङ्मय के चार भाग किये गये हैं: - प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग और द्र व्यानुयोग । प्रथम में सदाचारी स्त्री पुरुषों का जीवन अंकित है । fe धार्मिक विधान को किस व्यक्ति ने किस प्रकार आचरित किया; अनेक विघ्न