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________________ ३३८ अपभ्रंश-साहित्य पहु! अप्पह नरिंदाणं दुम्मंती दूसए गुण-कलावं। एक्कं पि तुंबिणीए बीयं नासेइ गुलभारं ॥५३॥ हे प्रभो ! कुमन्त्री, राजा के समग्र गुणों को दूषित कर देता है जिस प्रकार तुम्बिनी का एक ही बीज सारे लता गुल्म को ढांक लेता है । कृति के अपभ्रंश पद्यों में रड्डा, पद्धडिया और पत्ता छन्दों का ही प्रधानता से प्रयोग हुआ है। मयण पराजय चरिउ यह हरिदेव कृत दो सन्धियों की एक रूपक कृति है। इस अप्रकाशित कति की हस्तलिखित प्रति आमेर शास्त्र भंडार में उपलब्ध है (प्र० सं० पृष्ठ १५३-१५४) । कृति में रचनाकाल का कोई निर्देश नहीं मिलता। हस्तलिखित प्रति का समय वि० सं० १५७६ है । अतः इतना ही निश्चय से कहा जा सकता है कि कृति की रचना इस समय से पूर्व हो चुकी होगी। भाषा की दृष्टि से भी कृति १५ वीं-१६ वीं शताब्दी की ही प्रतीत होती है । कृति में घत्ता शैली है किन्तु बीच-बीच में दुवई और वस्तु छन्दों का भी प्रयोग मिलता है। कथा संक्षेप में इस प्रकार है-- राजा कामदेव, मोह नामक मंत्री और अहंकार, अज्ञान आदि सेनापतियों के साथ भव नगर में राज्य करते हैं। चरित्रपुर के राजा जिनराज उनके शत्रु हैं क्योंकि वह मुक्ति अंगना से विवाह करना चाहते हैं। कामराज, राग-द्वेष नामक दूत के द्वारा उनके पास यह सन्देश भेजते हैं कि या तो आप अपना यह विचार छोड़ दें और अपने तीन रत्न-दर्शन, ज्ञान और चरित्र-मुझे सौंप दें या युद्ध के लिये तैयार हो जाय । जिनराज ने कामदेव से लोहा लेना स्वीकार किया । अन्त में काम परास्त होता है'। कृति की शैली के परिज्ञान के लिये निम्नलिखित उदाहरण देखिये । कामदेव से लोहा लेने के लिये युद्धोद्यत जिन भटों के वचन अधोलिखित उद्धरण में अंकित हैं वज्ज घाउ को सिरि ण पडिच्छइ, असि धारा पहेण को गच्छइ । को जम करणु जंतु आसंघइ, को भुवदंडई सायर लंघइ। को जम महिस सिंग उप्पाडइ, विप्फुरंतु को दिणमणि तोडइ। को पंचायणु सुत्तउ खवलइ, काल कुठ्ठ को कवलहि कवलइ। आसीविस मुहि को कर च्छोहइ, धगधगंत को हुववहि सोवइ । लोह पिंडु को तत्तु घवक्कइ, को जिण संमुहु संगरि धक्कइ। निय घर मज्शि करहि वहु घिट्टिद, महिलहं अग्गइ तेरी वट्ठिम। २.७ युद्धार्थ जाते हुए कामदेव के अपशकुनों का चित्रण निम्नलिखित उद्धरण में दिखाई देता है-- १. नागरी प्रचारिणी पत्रिका वर्ष ५०, अंक ३-४ में प्रो० हीरालाल का लेख।
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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