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बारहवां अध्याय
अपभ्रंश रूपक-काव्य
भारतीय साहित्य में रूपकात्मक साहित्य एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। इसमें अमूर्त भावों को मूर्त रूप में उपस्थित किया जाता है। हृदय के सूक्ष्म अमूर्त भाव इन्द्रियों का विषय नहीं बन सकते । जब वही भाव उपमा या रूपक द्वारा स्थूल-मूर्त रूप - ग्रहण कर लेते है तो वे इन्द्रियगोचर हो जाने से अधिक स्पष्ट और बोधगम्य बन जाते हैं । इन्द्रियों के द्वारा साक्षात् रूप में प्रत्यक्ष होने पर ये सूक्ष्म भाव सजीव रूप धारण कर लेते हैं और हृदय को अत्यधिक प्रभावित करने में समर्थ होते हैं । इसी कारण काव्य में अमूर्त का मूर्त रूप में -- अरूप का रूपाकार में -- विधान प्रचलित हुआ ।
इस रूपक शैली के बीज हमें उपनिषदों में दिखाई देते हैं । बृहदारण्यक उपनिषद् के उद्गीथ ब्राह्मण (१.३) में और छान्दोग्य उपनिषद् (१.२) में एक रूपकात्मक आख्यायिका का संकेत है । बौद्ध साहित्य में जातक निदान कथा के "अविदूरे निदान " की मार विजय सम्बन्धी आख्यायिका में इसी शैली के दर्शन होते हैं। इसी प्रकार जैन कथा साहित्य में भी अनेक रूपकात्मक आख्यान मिलते हैं । रूपक - काव्य - शैली सर्व प्रथम • सिद्धर्षिकृत उपमिति भव प्रपंच कथा ( वि० सं० ९६२ ) में मिलती है । इस ग्रन्थ की भाषा संस्कृत है । इस में जीव के संसार परिभ्रमण की कष्ट कथा और उसके कारणों का उपमा के द्वारा सुन्दर ढंग से प्रतिपादन किया गया है ।
कृष्ण मिश्र ने अपना प्रबोध चन्द्रोदय नामक नाटक इसी शैली में लिखा । इसमें मोह, विवेक, ज्ञान, विद्या, बुद्धि, दम्भ, श्रद्धा, भक्ति आदि अमूर्त भावों को स्त्री और पुरुष पात्रों का रूप दिया गया है ।
तेरहवीं शताब्दी में यशः पाल ने "मोह पराजय" २ नामक नाटक लिखा । इसमें ऐतिहासिक पात्रों के साथ लाक्षणिक चरित्रों का संमिश्रण और मोह पराजय का चित्रण दिखाई देता है । मोहराज द्वारा समाचार जानने के लिए भेजा हुआ गुप्तचरज्ञानदर्पण आकर बतलाता है कि मोहराज ने मनुष्य के मानस नामक नगर को घेर लिया है और उसका राजा विवेकचन्द्र अपनी शान्ति नामक पत्नी और कृपा सुन्दरी नामक कन्या के साथ वहां से निकल भागा है । कुमारपाल की स्त्री — शिष्टाचार और सुनीति की कीर्ति मंजरी नाम की कन्या - पति परित्यक्ता हो मोहराज से सहायता की प्रार्थना करती है और मोहराज कुमारपाल पर शीघ्र ही चढ़ाई करना चाहता है ।
१. कवि नागदेव कृत मदन पराजय, संपादक प्रो० राजकुमार जैन, भारतीय ज्ञानपीठ, काशी, वि० सं० २००४, प्रस्तावना, पृष्ठ ४३ ।
२. गायकवाड़ ओरियंटल सीरीज बड़ौदा से प्रकाशित ।