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अपभ्रंश मुक्तक काव्य - ३
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विवाह, गोष्ठी, लौकिकाख्यान - प्रसंगादि लौकिक जीवन से संबद्ध अवसरों पर प्रयुक्त हुए हैं। अनेक अवसरों पर ये पद्य गोपों और चारणों के मुख से सुने जाते हैं । इस प्रकार इस मुक्तक परंपरा का जन-साधारण के साथ संपर्क बना हुआ था ऐसा अनुमान किया सकता है ।
साहित्यिक सुभाषित रूप में प्राप्त मुक्तक पद्य का जो रूप हमें अपभ्रंश साहित्य में दिखाई देता है इसका अधिकांश प्रभाव आगे चल कर हिन्दी साहित्य के रीतिकाल पर पड़ा। उस काल ' भी दोहा शैली में रचनाएँ हुईं और इसी भाव धारा को अभिव्यक्त करने वाले पद्य कवियों के मुख से निकले। जिस प्रकार अपभ्रंश मुक्तक काव्य की धार्मिक धारा ने हिन्दी - साहित्य के भक्ति काल को प्रभावित किया उसी प्रकार विविधसाहित्यिक ( सुभाषित) धारा ने हिन्दी साहित्य के रीति काल को ।