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________________ ३३२ अपभ्रंश-साहित्य शिव की स्तुतिः "जसु सीसहि गंगा गोरि अधंगा, गिव पहिरिअ फणि हारा। कंठ-ट्ठिअ वीसा पिंधण दीसा, संतारिअ संसारा। किरणावलि कंदा वंदिअ चंदा, णअणहि अणल फुरंता। सो संप दिज्जउ वहु सुह किज्जउ, तुम्ह भवाणी कंता ॥ (पृ० १६९) कुछ सद्गृहस्थ, संतोष, परोपकारादि विषयक पद्य भी मिलते हैं--- "सुधम्म-चित्ता गुणवन्त - पुत्ता, सुकम्म-रत्ता विणआ कलत्ता। विसुद्ध-देहा धणवंत गेहा, कुणंति के बव्वर सग्ग-जेहा ॥" (पृ० ४३०) "सेर एक्क जइ पावइ चित्ता। मंडा वीस पकावउ णित्ता। टंकु एक्क जइ सेंधव पाआ। जो हउ रंको सो हउ राआ॥" . (पृ० २२४) “सो जण जणमउ सो गुण-मंतउ, जो कर पर-उवआर हसंतउ । जे पुण पर-उपआर विरुज्झउ, ताक जणणि किण थक्कउ बझउ ॥ (पृ० ४७०) पुरातन प्रबन्ध संग्रह: पुरातन प्रबन्ध संग्रह में प्राप्त कुछ अपभ्रंश पद्यों का पीछे अपभ्रंश महाकाव्य के प्रकरण में निर्देश किया जा चुका है। इसमें पृथ्वीराज विषयक पद्यों के अतिरिक्त अन्य अपभ्रंश पद्य भी मिलते हैं। ___उपरिनिर्दिष्ट ग्रन्थों के अतिरिक्त जिनेश्वर सूरि रचित कथा कोष प्रकरण', गुणचन्द्र मुनि कृत महावीर चरित, उपदेश तरंगिणी', लक्ष्मण गणि कृत सुपासनाह चरिय, आदि ग्रन्थों में भी इतस्ततः विकीर्ण कुछ अपभ्रंश पद्य मिल जाते हैं। _____ ऊपर जो भी विविध-साहित्यिक सुभाषित रूप में मुक्तक पद्य दिये गये हैं वे उसके रूप को स्पष्ट करने के लिये पर्याप्त हैं। भिन्न भिन्न स्थलों पर प्राप्त अपभ्रंश पद्य १. गोरि अधंगा--पार्वती अर्धांगिनी है। कंठअि ......-दीसा--जिसके कण्ठ में विष स्थित है और दिशायें ही जिसका परिधान हैं। २. मुनि जिन विजय जी द्वारा, सिंघी जैन विद्यापीठ, कलकत्ता, वि० सं० १९९२ ३. संपादक मुनि जिन विजय जी, सिंघी जन ग्रंथमाला, ग्रंथांक ११, ___ भारतीय विद्या भवन, बम्बई, १९४९ ई०।। ४. देवचन्द्र लालाभाई जैन पुस्तकोद्धार, ग्रंथांक ७५, बम्बई, वि० सं० १९८५ । ५. एम. बी. शाह, काशी। ६. पं० गोविन्द दास सेठ द्वारा, जैन विविध साहित्य शास्त्र माला, काशी १९१८ ई० में प्रकाशित।
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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