________________
अपभ्रंश रूपक काव्य
३३५ . हेमचन्द्राचार्य के तपोवन में कुमारपाल की विवेकचन्द्र के साथ भट होती है और कुमारपाल उसकी कन्या कृपासुन्दरी पर आसक्त हो जाते हैं। अन्त में विवेकचन्द्र इस शर्त पर कन्यादान करते हैं कि सात व्यसनों को आश्रय नहीं दिया जायगा । द्यूत, मद्य, मांस आखेट आदि सभी व्यसन देश से निर्वासित कर दिये जाते हैं । मोहराज की पराजय होती है और अन्त में विवेकचन्द्र पुनः सिंहासनारूढ़ होते हैं।'
मोह पराजय के समान ही एक रूपकात्मक प्रबन्ध मेरुतुंगाचार्य की प्रबन्ध चिन्तामणि (वि० सं० १३६१) के परिशिष्ट में मिलता है । इसमें भी राजा कुमारपाल का अर्हद्धर्म और अनुकम्पा देवी की कन्या अहिंसा को आचार्य हेमचन्द्र के आश्रम में देख कर उस पर मुग्ध होना और अन्त में उनका परिणय वणित किया गया है । रूपक शैली में लिखा गया नागदेव कृत मदन पराजय लगभग १४वीं शताब्दी की रचना है।
__इसी प्रकार वेंकटनाथ कृत संकल्प सूर्योदय' नामक नाटक, जय शेखर सूरि कृत प्रबोध चिन्तामणि नामक प्रबन्ध, भूदेवशक्ल कृत धर्मविजय नामक नाटक, कवि कर्णपूरविरचित चैतन्यचन्द्रोदय नामक नाटक, वादिचन्द्र सूरि कृत ज्ञान सूर्योदय नाटक, इसी रूपकात्मक शैली में रचे गये । इनके अतिरिक्त विद्यापरिणयन (१७वीं शताब्दी का अन्त), जीवानन्दन (१८वीं शताब्दी का आरम्भ) और अनन्त नारायण कृत माया विजय आदि रूपक-प्रधान कृतियों की रचना अठारहवीं शताब्दी तक चलती रही।
अपभ्रंश में रूपकात्मक शैली का सर्वप्रथम दर्शन हमें "जीवमनः करणसंलाप कथा" नामक खंड-काव्य में होता है।
जीवमनः करण संलाप कथा सोमप्रभाचार्य कृत 'कुमारपाल प्रतिबोध' प्राकृत-प्रधान ग्रन्थ है । इसमें कुछ अंश. अपभ्रंश के भी हैं । उसी का एक अंश (पृ० ४२२-४३७) जीवमनः करण संलाप कथा है।
१. वही, पृ० ४७ । २. प्रबन्ध चिन्तामणि, पृ० १२६ । ३. मदन पराजय, प्रस्तावना, पृ० ९४ । ४. आर. कृष्णमाचारि द्वारा संपादित, मेडिकल हाल प्रेस, बनारस से प्रकाशित । ५. नारायण शास्त्री खिस्ते द्वारा संपादित, प्रिंस आफ वेल्स सरस्वती भवन सिरीज,
बनारस से प्रकाशित, सन् १९३० । ६. मदन पराजय, प्रस्तावना, पृ० ५३। ७. लुडविग आल्सडर्फ, देर कुमारपाल प्रति बोष, हेम्बर्ग, जर्मनी, सन् १९२८ ।
कुमारपाल प्रति बोष, मुनिराज जिन विजयजी द्वारा संपादित, सेन्ट्रल लाइब्ररी बड़ौदा, सन् १९२० ।