SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 345
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपभ्रंश मुक्तक काव्य - ३ ३२७ कवि कल्पना करता है मानो उनके हृदय में स्थित अपरिमित प्रियतम का अनुराग बाहर फूट पड़ा हो । इसी प्रकार ग्रीष्म में सूर्य की तप्त किरणें हैं, पथिक तृष्णा से व्याकुल हैं, शरीर पर चंदन और स्नानार्थं धारा-यन्त्रों का प्रयोग किया जा रहा है, लोग मधुर द्राक्षा-जल पान कर रहे हैं इत्यादि । "जह तरुणिहिं घण घुसिगंगराओ निम्मविओ सीयसंगम विधाओ । मण मज्झि अमंतु पियाणुराओ नं निग्गओ बाहिरि निव्विवाओ ॥ इसके अतिरिक्त स्थल स्थल पर स्फुट पद्य भी मिलते हैं जिनमें सुभाषित, प्रेम प्रसंग, कथा प्रसंग, उपदेश आदि मिलते हैं । कुछ पद्यों में समस्या पूर्ति का ढंग भी दिखाई देता है । उदाहरण के लिये "कवणु पियावउं खीरु" की समस्यापूर्ति निम्नलिखित पद्य में देखिये " रावणु जायउ जहि दियहि दहमुह चिताविय तइयह जणणि कवणु एक्क-सरीरु । पियावउं खीर ॥ ( पृ० ३९० ) कुमारपाल प्रतिबोधान्तर्गत कुछ मुक्तक पद्यों के उदाहरण नीचे दिये जाते हैं। " पडिवज्जिवि दय देव गुरु देवि सुपत्तिहि दाणु । विरइवि दीण जणुद्धरण करि सफलउं अप्पाणु ॥” --- (कु० पा० प्र० १०७ ) " पुत्तु जु रंजइ जणय-भणु थी आराहइ कंतु । भिच्चु पसन्न करs पहु इहु भल्लिम पज्जंतु ॥” (वही, पृ० १०८ ) "चूडउ चुन्नी होइसइ मुद्धि कवोलि निहित्तु । सासानलिण झलक्कियउ वाह सलिल संसित्तु ॥ " ( वही पृ० १०८ ) हेमचन्द्र ने भी यह दोहा अपन प्राकृत व्याकरण (८.४.३९५ ) में उद्धृत किया है। इ अचम्भु दिट्ठ मई कंठि व लुल्लई काउ । rtofa बिरह - कलियहे उड्डाविय उवराउ ।। " ( वही पृ० ३९१ ) "यह रोयइ मणि हसइ जणु जाणइ सउ तत्तु । वेस विसिह तं करइ जं कट्ठह करवत्तु ॥" "जे परदार- परम्मुहा ते बच्चाह जे परिरंभहि पर रमणि ताहं फुसिज्जइ ( वही पृ० ८६ ) नरसीह । लीह ॥ ( वही पृ० १२५ ) "अम्हे थोड़ा रिउ बहुध इउ कायर चिन्ति । मुद्धि बिहालहि गयणयन्तु कइ उज्जोउ करंति ॥" ( वही पृ० १५७ )
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy