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________________ ३२८ अपभ्रंश - साहित्य " रिद्धि विहूणह माणुसह न कुणइ कुवि सम्माणु । सउणिहि मुच्चइ फल रहिउ तरुवरु इत्थ पमाणु ॥” ( वही ० पृ० ३३१) " जइ वि हु सूरु सुरूवु त्रिअक्षगु तहवि न सेवइ लच्छि पइक्खण । पुरिस - गुणागुण- मुणण-परम्मुह महिलह बुद्धि पपह जं बुह ॥" ( वही ० पृ० ३३१) मेरुतुंगाचार्य कृत प्रबन्ध चिंतामणि' प्रबन्ध चिंतामणि ( वि० सं० १३६१) नामक ग्रन्थ में भी अनेक मुक्तक पद्य मिलते हैं। इसमें कुछ पद्य राजादि किसी ऐतिहासिक पात्र से संबद्ध हैं, कुछ वीर, शृङ्गार, वैराग्यादि भावों के द्योतक हैं और कुछ सुन्दर सुभाषित हैं । तैलंगाधिपति द्वारा मुंज के बंदी किये जाने पर उसके मुख से अनेक सुन्दर कारुणिक पद्य सुनाई देते हैं : "झोली तुट्टवि कि न मूउ किं हूअ न छारह पुञ्ज । हिण्ss दोरी दोरियउ जिम मंकडु तिम मुञ्जु ॥" ( पृ० २३ ) "चित्ति विसाउ न चितीयइ रयणायर गुण पंज । जिम जिम वायइ विहि पडहु तिम नचिज्जइ मुंज ॥ " ( पृ० २३ ) "भोली मुन्धि म गव्वु करि पिक्खिवि पड्डरूयाइं । चउवह सई छहत्तरइं मुंजह गयह गयाई ।। " ( पृ० २४ ) मुख के मृणालवती को कहे हुए पद्म भी सरस हैं ----- " मुञ्जु भणइ मुणालवइ जुव्वणु गयउ न झूरि । जइ सक्कर सयखण्ड थिय तोइ स मीठी चूरि ॥ ( पृ० २३) " जा मति पच्छइ संपज्जइ सा मति पहिलो होइ । मुञ्ज भणइ मुणालवइ विघन न वेढइ कोइ ॥ ' ( पृ० २४ ) "कसु करु रे पुत्त कलत्त धी कसु करु रे करसण वाडी । एकला आइवो एकला जाइवो हाथ पग बेहु झाड़ी || ( पृ० ५१ ) "एहु जम्मू नग्गहं गियउ भडसिरि खग्गु न भग्गु । तिक्खा तुरिय न वाहिया गोरी गलि न लग्ग ॥ " ( पृ० ३२ ) दिगंबर व्रत पालन करते करते जन्म बीत गया। किसी योद्धा के सिर पर न खड्ग प्रहार किया न तेज घोड़ा चलाया और न किसी सुन्दरी का कण्ठालिंगन किया । निम्नलिखित पद्य में "कवणु पियावउं खीरु" पर समस्या पूर्ति मिलती है : " जई यह रावणु जाईयउ दहमहु इक्कु सरीरु । जणणि वियम्भी चिन्तवइ कवणु पियावउ खीरु ॥" ( पृ० २८ ) १. मुनि जिन विजय जी द्वारा संपादित सिंघी जैन ग्रंथमाला में शान्ति निकेतन बंगाल से वि० सं० १९८९ में प्रकाशित ।
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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