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________________ २९८ अपभ्रंश-साहित्य की ग्रन्थ सूची से स्पष्ट होता है । जिन कृतियों का ऊपर विवरण दिया गया है हमारे विचार को तथा इस धार्मिक भावना की विचारधारा को स्पष्ट करने के लिए ये कृतियाँ पर्याप्त हैं। ___आध्यात्मिक और आधिभौतिक उपदेश प्रधान रचनाओं में हमें निम्नलिखित समानतायें दृष्टिगत होती हैं. १. इनमें सरल भाषा का प्रयोग किया गया है । भाषा के सौन्दर्य की ओर ध्यान न देकर भाव की ओर दृष्टि रखी गई है। २. जिन दृष्टान्तों द्वारा भाव को स्पष्ट करने का प्रयत्न किया गया है वे इस प्रकार के हैं कि जिनका सर्व साधारण के जीवन के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध है । इस प्रकार के दृष्टान्तों के प्रयोग के द्वारा कृतिकारों ने अपने भावों को सुबोध और हृदयंगम बनाने का प्रयत्न किया है। ३. दोनों प्रकार के कृतिकारों के हृदय उदार थे। इनकी कृतियों में धर्म सम्बन्धी सहिष्णुता और उदार भावों के दर्शन होते हैं। आध्यात्मिक रचनाओं के रचयिताओं-साधकों-की कृतियों में निम्नलिखित विशेषतायें मिलती हैं : १. इनकी कृतियों में गुरु का महत्व बतलाया गया है । सुगुरु और कुगुरु में भेद बतलाते हुए सुगुरु को प्राप्त करने का आदेश दिया गया है । २. इन्होंने बाह्य कर्मकाण्ड का विरोध किया है । मन्त्र, तन्त्र, पूजा ध्यान, शास्त्राभ्यास आदि सबको व्यर्थ बता कर आन्तरिक शुद्धि पर बल दिया है । यद्यपि बाह्य कर्म काण्ड का खंडन इनकी रचनाओं में मिलता है किन्तु कहीं पर भी पर-निन्दा या कटुता का आभास नहीं मिलता। ३. संसार को क्षणिक बताते हुए विषयों के परित्याग का उपदेश इन्होंने दिया है। विषय त्याग के लिए इन्द्रिय-निग्रह और मन को वश में करने का उपदेश भी दिया गया है। ४. संसार को क्षणिक, विषयों को अग्राह्य बन्धु बांधवों के सम्बन्ध को मिथ्या बताते हुए वैराग्य भावना को उद्बद्ध करने का प्रयत्न, इनकी कृतियों में मिलता है। इस प्रकार प्रवृत्तिमार्ग की अपेक्षा निवृत्तिमार्ग का उपदेश यद्यपि इनकी रचनाओं में प्रमुख है तथापि ये साधक गृहस्थाश्रम और स्त्री की अवहेलना नहीं करते । इनको वहीं तक त्याज्य बताते हैं जहां तक ये साधना मार्ग में बाधक हों। ५. सब कुछ क्षणिक, नश्वर और हेय बताते हुए आत्मानुभूति और आत्म स्वरूप ज्ञान का उपदेश इनकी रचनाओं में मिलता है। आत्मा देह स्थित है। तीर्थयात्रा, देवालय आदि में भटकने की अपेक्षा स्वदेहस्थित आत्मा को जानने का प्रयत्न करना चाहिये। "यत्पिण्डे तत्ब्रह्माण्डे" की भावना को सदा जागरूक रखने का प्रयत्न इन साधकों ने किया । ६. इन साधकों का विचार है कि समरस होने पर जीव परमानन्द को प्राप्त होता है ।
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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