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________________ अपभ्रंश मक्तक काव्य--१ २९७ कर रंगता है । चूनड़ी का दूसरा नाम चुण्णी-चुर्णी-भी है, जिसका अभिप्राय है इधर उधर बिखरे हुए प्रकीर्णक विषयों का लेखन अथवा चित्रण । एक मुग्धा पति से ऐसी चूनड़ी की प्रार्थना करती है जिसे ओढ़ कर जिन शासन में विचक्षणता प्राप्त हो। इसी को ध्यान में रखकर कृतिकार ने इसकी रचना की है। इस प्रकार कवि ने इस कृति के द्वारा धार्मिक भावनाओं और सदाचारों की रंगी चूनड़ी ओढ़ने का संकेत दिया है। कृति का आरम्भ कृतिकार ने पंचगुरु वन्दना और सरस्वती वन्दना से किया है। आत्म-विनय का प्रदर्शन करने के अनन्तर कवि ने जैन धर्म के तत्वों का निर्देश किया है। विणएँ वंविवि पंचगुरु, मोह महा तम तोडण दिणयर । णाह लिहावहि चूनडिय, मुद्धउ पभणइ पिउ जोडिवि कर ॥ ध्रुवकं। पणवउँ कोमल कुवलय णयणी, ......... पसरिवि सारद जोण्ह जिम, जा अंधारउ सयलु वि णासइ । सा महु णिवसउ माणसहि, हंस-वधू जिम देवि सरासइ ॥१॥ xxx हीरादत पंति पयडती, गोरउ पिउ बोलई विहसंती। सुन्दर जाइ सु चेइ हरि, महु दय किज्जउ सुहय सुलक्खण । . लइ छिपावहि चूनडिय, हउँ जिण सासणि सुट्ठ वियक्खण' ॥१॥ ग्रंथ में पद्धडिया छन्द की ही प्रधानता है। चूनड़ी के विषय की कबीर के निम्नलिखित पद से तुलना कीजिए। झीनी झीनी बीनी चदरिया। काहे के ताना काहे के भरनी, कौन तार से बीनी चदरिया। इंगला पिंगला ताना भरनी, सुषमन तार से बीनी चदरिया ॥१॥ आठ कंवल दल चरखा डोले, पांच तत्व गन तीनि चदरिया। साइं को सियत मास दस लागे, ठोंक ठोंक के बीनी चदरिया ॥२॥ सो चादर सुर नर मुनि ओढ़ी, ओढ़ी के मैली कीनी चदरिया। दास कबीर जतन सों ओढ़ी, ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया ॥३॥ कबीर ने उपदेश दिया कि मनुष्य शरीर देवता का मन्दिर है, इसे अपवित्र न होने दो। इस प्रकार कबीर की चदरिया अध्यात्म भाव-प्रतिपादक है, विनयचन्द्र की लौकिक भाव प्रतिपादक । इसी चूनड़ी की भावना से कबीर की भावना का विकास प्रतीत होता है । अतः यह कवि कबीर से पूर्व ही किसी काल में हुआ होगा ऐसी कल्पना की जा सकती है। ___ ऊपर जिन जैन धर्म सम्बन्धी रचनाओं का निर्देश किया गया है उनके अतिरिक्त भी अनेक छोटी छोटी रचनाएँ जैन भण्डारों में विद्यमान हैं। जैसा कि पाटन भण्डार १. अनेकान्त वर्ष ५, किरण ६-७ से उद्धृत ।
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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