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________________ अपभ्रंश मुक्तक काव्य - १ २९३ कल्पतरु को काट कर ऐरंड को बोता है । जो धर्म के बिना मोक्ष प्राप्ति चाहता है वह स्वप्न प्राप्त राज्य में मूच्छित रहता है, जल में प्रतिबिम्बित चन्द्र को ग्रहण करना चाहता है और बिना बोये खेत से ही धान्य पाना चाहता है । कर्मफल भोग का सुन्दर शब्दों में प्रतिपादन निम्नलिखित पद्य में मिलता है"धं न करेसि वंछेसि सुह मुत्तिए चणय विक्केसि वंछेसि वर मुत्तिए । जं जि वाविज्जए तं जि (ति) खलु लुज्जए भुज्जए जं जि उग्गार तस्स किज्जए" ॥५२॥ अरे तुम धर्म नहीं करते और मुक्ति सुख चाहते हो ? चने बेचते हो और (बदले में) सुन्दर मोती चाहते हो ? जो जैसा बोता है वैसा ही काटता है । जो मनुष्य जो भी कुछ खाता है उसी का उद्गार करता है । सुकृतोपार्जन, दुष्कृत त्याग और सकल जीवों के प्रति मैत्री के उपदेश से कृति समाप्त होती है । कृति में कई व्यक्तियों, दृष्टान्तों और कथाओं के निर्देश मिलते ह-मालव नरेन्द्र पृथ्वी चन्द्र (५), अंगारदाह दृष्टान्त (२०), शालिभद्र, भरत, सगर (२२), सनत्कुमार चक्री (५३), सुभट चरित (५४), गय सुकुमालक (५५), पुंडरीक मरुदेवी, भरतेश्वर, प्रसन्न चन्द्र दृष्टान्त (५६) और नन्द दृष्टान्त (५७) । भाषा — कृति की भाषा सरल और चलती हुई है। बीच-बीच में पाण्डित्य - मय भाषा के भी दर्शन हो जाते हैं ( जैसे पद्य ३३, ३६, इत्यादि) । अनुरणनात्मक शब्दों का प्रयोग भी कहीं-कहीं मिलता है। "अनुढक्कहि भुत्तउ तडफडंत, जंतेहि निपीडिय कडयडंत । रहि जुतउ तुट्टउ तडयडंतु, वज्जावलि पक्कउ कढकढंतु " ॥ ४६ ॥ इस कृति की भाषा व्याकरण की दृष्टि से कहीं कहीं अव्यवस्थित है ( पद्य संख्या ४६, ६२ ) । पादपूर्ति के लिए 'ए' के प्रयोग का हलका सा आभास, जैसा कि उत्तरकालीन हिन्दी कविता में मिलता है, कहीं कहीं इस कृति के पदों में भी मिलता है । जैसे"घरि पलितंमि खणि सकइ को कूव ए ॥५७॥ बुड्ढ भावंमि पुण मलिसि नियहत्थ ए ॥ ५८ ॥ सुभाषित और वाग्धारायें -- इस ग्रन्थ की भाषा में सुभाषितों और वाग्धाराओं का प्रयोग भी दिखाई देता है "कि लोहदं घडिडं हियं तुज्झ" ॥ २५ ॥ क्या तुम्हारा हृदय लोहे का बना है ? "छगल गहणट्ठ मेरावणं विक्कए कप्पतरु तोडि एंरंडु सो वव्वए " ॥ १६ ॥ बकरी को लेने के लिए ऐरावत को बेचता है । कल्पवृक्ष को तोड़ कर ऐरंड को
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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