SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 312
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २९४ अपभ्रंश-साहित्य बोता है। "घरि पलितमि खणि सकइ को कूवए" ॥५७॥ घर के प्रदीप्त हो जाने पर कौन कुआ खोद सकता है ? "बुड्ढ भावंमि पुण मलिसि नियहत्थए” ॥५८॥ बुढ़ापे में फिर अपने हाथ मलोगे। "चणय विक्केसि बंछेसि वर मुत्तिए जं जि वाविज्जए तं जि (ति) खलु लुज्जए" ॥५२॥ चने बेचते हो और बदले में सुन्दर मोती चाहते हो? जो, जो कुछ बोयेगा वह वही काटेगा। द्वादश भावना सोमप्रभाचार्य कृत कुमार पाल प्रतिबोध (पृ. ३११) में द्वादश भावनाओं का उल्लेख है। कवि ने संसार की अनित्यता और क्षण भंगुरता का चित्रण किया है । जयदेव मुनि-कृत 'भावना संधि प्रकरण' और इस 'द्वादश भावना' में कई वाक्य समान हैं। "चलु जीविउ जुव्वणु धणु सरीरु, जिम्व कमल दलग्ग विलग्गु नीर। अहवा इहत्यि जं कि पि वत्थु, तं सव्वु अणिच्चु ह हा धिरत्थु ॥ पिय माय भाय सुकलत्तु पुत्तु, पहु परियणु मित्तु सिणेह-जुत्तु । पहवंतु न रखइ को वि मरणु, विणु धमह अन्नु न अस्थि सरणु ॥ एक्कलउ पावइ जीवु जम्म, एक्कलउ मरइ विढत्त-कम्मु । एक्कलउ परभवि सहइ दुक्खु, एक्कलउ धम्मिण लहइ मुक्खु ॥ (पृ० ३११) अर्थात् जीवन यौवन, धन, शरीर सब कमलपत्र स्थित जल के समान अस्थिर हैं । जो भी वस्तु इस संसार में है सब अनित्य है । प्रियतम माता, भाई, पत्नी, पुत्र, स्वामी, परिजन, स्नेहीमित्र कोई मरण से रक्षा नहीं कर सकता। धर्म के अतिरिक्त अन्य कोई शरण नहीं।... जीव अकेला ही धर्म को प्राप्त करता है और कर्मों से लिप्त अकेला ही मृत्यु को प्राप्त होता है । जन्मान्तर में अकेला ही दुःख सहता है और धर्म के द्वारा अकेला ही मोक्ष को प्राप्त करता है। ___ इस प्रकार कवि ने चौदह पद्धडिया छन्दों में द्वादश भावनाओं के पालन का महत्व प्रतिपादित किया है। १. सोम प्रभाचार्य के परिचय के लिये देखिये १२वें अध्याय में 'जीवमनः करण संलाप कथा', पृ० ३३५।
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy