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________________ २९२ अपभ्रंश-साहित्य अनिश्चित है। कृति में मालव नरेन्द्र मुंज (१०५४ वि० सं० मृत्युकाल) के निर्देश से कल्पना की जा सकती है कि जयदेव विक्रम की ११वीं शताब्दी के बाद ही हुए होंगे। भाषा की दृष्टि से संपादक का विचार है कि कृति १३वीं-१४वीं शताब्दी की रचना है।' कृति का विषय नैतिक और धार्मिक जीवन का उपदेश है । संसार की दुःख बहुलता वैराग्य भावना, विषय त्याग, मानव जन्म की दुर्लभता, पाप त्याग कर पुण्य संचय करना इत्यादि विषयों का ही कवि ने उपदेश दिया है। ____ रचयिता ने संसार को इन्द्रजाल (पद्य २) बता कर प्रिय मित्र, गृह, गृहिणी इत्यादि सबको मिथ्या बताया है-- "पिय पुण मित्त घर घरणि जाय इह लोइ य सव्वि व सुहु सहाय । नवि अत्थि कोइ तुह सरणि मुक्ख इक्कुलउ सहसि तत्रं नरय दुक्ख" ॥३॥ अर्थात् प्रिय मित्र, गृह, गृहिणी सब इस लोक में सुख के साथी हैं । हे मूर्ख ! दुःख में तेरा कोई शरण-दाता नहीं, अकेले ही तू नरक दुःख सहन करेगा। संसार से विरक्ति का उपदेश देता हुआ कवि कहता है "मन (त) रच्चि रमणि रमणीय देहि वस मंस रुहिर मल मुत्त गेह। दढ देवि रत्तु मालवु नरिंद गय रज्ज पाण हुय पुहवि चंदु" ॥५॥ अर्थात् वसा मांस रुधिर मल-मूत्र-निधान रमणी के सुन्दर देह में अनुरक्त न हो। देवी में अत्यन्त आसक्त मालवराज पृथ्वी चन्द्र अपने राज्य और प्राणों से हाथ धो बैठा। आगे कवि निर्देश करता है कि काम क्रोधादि एवं आश्रवादि का त्याग कर श्रद्धा युक्त हो जिन वचनों के श्रवण से सुख प्राप्ति होती है (६, ९)। हिंसा से अकाल मरण या परवंचना एवं द्रव्यापहरण से दारिद्र्य प्राप्त होता है (२७, २८) । सरल और सुन्दर भाषा में जयदेव विषय त्याग कर धर्म संचय का उपदेश देते हैं "दहइ गोसीसु सिरिखंड छारक्कए, छगलगहणट्ठमेरावणं विक्कए। कप्पतरु तोडि एरंद सो वव्वए, जज्जि विसएहि मण्यत्तणं हारए" ॥१६॥ "सुमिण पत्तंमि रज्जंमि सो मुच्छए, सलिल संकं ससि गिन्हि वंछए अबियखित्तेसु धन्नाइ सो कंखए, जुज्जि धम्मेण विण मुक्ख आविक्ख ए" ॥१७॥ अर्थात् जो विषयों के लिए मनुष्यत्व खो बैठता है वह मानो क्षार के लिए गोशीर्ष और श्री खंड को जला डालता है, छाग को पाने के लिए ऐरावत को बेच डालता है और १. वही पृ० २
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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