SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 305
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपभ्रंश मुक्तक काव्य - १ "एहु धम्मु जो आयरs बंभणु सुद्द वि कोई । सो सावउ कि सावयहं अण्णु कि सिरि मणि होइ" ॥७६॥ कवि रचित इन दोहों में अभिमान और अक्खड़पन नहीं दिखाई देता । भाषा - ऊपर दिये गये उदाहरणों से स्पष्ट है कि कवि ने सरल और चलती हुई भाषा में हृदयस्पर्शी दृष्टान्तों के द्वारा भाव को अभिव्यक्त किया है । भाषा वाग्धारा और सुभाषितों से अलंकृत है । " जहि साहस तहि सिद्धि” (७१) fe सावयहं अण्णु कि सिरि मणि होइ ॥७६॥ आधुनिक प्रचलित मुहावरा है सिर पर सींग होना । उसी भाव में यहां सिर पर मणि होना इसका प्रयोग किया गया है । प्रतिपाद्य विषय को स्पष्ट करने के लिए लेखक ने दैनिक जीवन से नित्य-संबद्ध अप्रस्तुतों का, अलंकारों और दृष्टान्तों में अप्रस्तुत विधान के लिए प्रयोग किया है । जैसे हल, बैल, खारी जल, कूआँ, धतूरा, नौका, वृक्ष, साँप, दीपक, पतंग, उल्लू, गेंद, आरती, इत्यादि । ' लेखक की भाषा के शब्दों में परसर्गों का प्रयोग भी दिखाई देता है । घरतणउ = घर का (६२), जमभडतणउ = यम भट का (८८) इत्यादि । कवि की इस रचना में अनेक शब्दों का रूप प्रतीत होता है । कहीं कहीं मराठी और पंजाबी के कच्चासण थोड बहुत्तु लोणि (मराठी) दोदिण वसियउ खेत्ती कपड १. देखिये सावय धम्म दोहा संख्या ३, ४६, ६५, ७६, ८१, ८७, ९९, १०५, १२६, १३५, १५३, १९६ । २. उदाहरण के लिये निम्नलिखित शब्द देख सकते हैं । शब्दों के आगे की संख्या दोहों की संख्या है- ढक्कइ डालह घरतणउ दुद्धे (पंजाबी) कच्चा भोजन थोड़ा हिन्दी भाषा के शब्दों के समान सा शब्द भी प्रयुक्त हुए हैं । " २८७ बहुत मक्खन, नवनीत दो दिन का वासी खेती कपड़े पर ढोक्यते - आवे डाल का घर का दूध से १४ २३ २३ २८ ३५ ५५ ५६ ६०,११२,१८७ ६१ ६२ ६५
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy