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________________ अपभ्रंश मुक्तक काव्य-१ २७९ और आत्मा को प्रिय मान उसको प्राप्त करने और उसमें एकाकार हो जाने की हल्की सी भावना भी एक दोहे में मिलती है। कवि ने अनेक उपमाओं, रूपकों और हदयस्पर्शी दृष्टान्तों द्वारा भाव को अभिव्यक्त किया है। इसकी भाषा सरल और सरस है। वाग्धाराओं का प्रयोग भी अनेक दोहों में मिलता है । इस ग्रन्थ में कुल २२२ पद्य हैं जिनमें से कुछ पद्य प्राकृत के और संस्कृत के भी हैं किन्तु बाहुल्य अपभ्रंश पद्यों का ही है। प्राकृत और संस्कृत के पद्यों में भी कुछ पद्यों को छोड़ कर शेष सब दोहा छंद में ही हैं। वैराग्य सार' वैराग्यसार सुप्रभाचार्य-कृत ७७ पद्यों की एक छोटी सी रचना है। केवल कुछ पद्यों से ही ऐसा प्रतीत होता है कि कवि जैन धमविलम्बी था, अन्यथा कवि ने सामान्य धर्म तत्त्वों का ही इस कृति में व्याख्यान किया है।। सुप्रभ दिगम्बर जैन थे (पद्य ४६) । कवि के काल और स्थान के विषय में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। कृति में वही भावधारा मिलती है जो इससे पूर्वकालीन लेखकों की थी । विचारधारा, शैली और भाषा की दृष्टि से लेखक के ११ वीं और १३ वीं शताब्दी के बीच में होने की कल्पना की जा सकती है । विषय--वैराग्य सार नाम से ही ग्रन्थ के विषय का आभास मिल जाता है। आरम्भ के पद्य में ही कवि वैराग्य भाव का आदेश करता है-. "इकहिं घरे वधामणा अहि घरि धाहहि रोविज्जई। परमत्थइ सुप्पउ भणइ, किम वइरायभाउ ण किज्जइ ॥ (पद्य. सं. १) एक घर में बधाई मंगलाचार है, दूसरे घर में धाड़ मार-मार कर रोया जा रहा है। सुप्रभ परमार्थ रूप से कहते हैं कि क्यों वैराग्य भाव नहीं धारण करते ? सांसारिक विषयों की अस्थिरता और संसार की दुःख-बहुलता का प्रतिपादन करता हुआ कवि कहता है __ "सुप्पउ भणइ रे धम्मियह, खसहु म धम्म णियाणि । जे सूरग्गमि धवलहरि, ते अंथवण मसाण" ॥२॥ अर्थात् सुप्रभ कहते हैं हे धामिको ! निदान धर्म से स्खलित न होवो। जो सूर्योदय पर शुभ्र गृह थे वे सूर्यास्त पर श्मशान हो गए। "सुप्पउ भणई मा परिहरहु पर उवचार (यार) चरत्थु । ससि सूर दुहु अंथवणि अणहं कवण थिरत्थु" ॥३॥ सुप्रभ कहते हैं कि परोपकार आचरण मत छोड़ो। संसार क्षणिक है जब चन्द्र १. प्रो० हरिपाद दामोदर वेलणकर ने एनल्स आफ भंडारकर ओरियंटल रिसर्च इंस्टिट्यूट, जिल्द ९, (पृ० २७२-२८०) में इसे संपादित किया है।
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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