________________
अपभ्रंश - साहित्य
afa इन्द्रिय निग्रह को आवश्यक समझता है-
२७८
"पंच बलद्द ण रक्खियइं गंदण वणु ण गओ सि ।
अप्पु ण जाणिउ ण वि परु वि एमइ पव्वइओ सि" ॥४४॥
न तो पांच बैलों से पांच इन्द्रियों से रक्षा की, न नन्दन वन - आत्मा में गया । न आत्मा को न पर को जाना ऐसे ही परिव्राजक हो गया ।
कवि अहिंसा और दया को ही सब से बड़ा धर्म समझता है । दशविध धर्म का सार ही अहिंसा है
"दहविह जिणवर भासियउ धम्मु अहिंसा सारु ॥ २०९ ॥ जीव वहंति णरयगइ अभय पदा सग्गु ।
वे पह जब ला दरिसियई जहि भावइ तह लग्गु " ॥ १०५ ॥ जीववध से नरक और अभय प्रदान से स्वर्ग प्राप्त होता है । दोनों मार्ग जाने के लिये बतला दिये। जहां भावे वहीं लग !
बहुएं सलिल विरोलिय
"दया विहीणउ धम्मडा णाणिय कह विण जोइ । करु चोप्पडु ण होइ " ॥ १४७॥
कवि सत्संग का उपदेश देता है-
" भल्लाण वि णासंति गुण जहि सह संगु खलेहि । वइसारु लोहहं मिलिउ पिट्टिज्जइ सुघर्णोह" ॥१४८॥ ' ग्रन्थ में संस्कृत का भी एक पद्य मिलता है— V" आपदा मूच्छितो वार चुकेनापि जीवति ।
अंभः कुंभ सहस्राणां गतजीवः करोति किम् ॥ २२२ ॥
अर्थात् आपत्तियों से मूच्छित नर चुल्लू भर पानी से होश में आ जाता है । प्राणनाश हो जाने पर हजारों घड़े पानी से भी क्या ?
ऊपर दिए उदाहरणों से निम्नलिखित तथ्य स्पष्ट हो जाता है
२
रामसिंह के "पाहुड दोहा " और योगीन्द्र के 'परमात्म प्रकाश' एवं 'योगसार' में अनेक दोहे अंश रूप से या पूर्ण रूप से मिलते जुलते हैं। रामसिंह ने गुरु भाव को महत्व दिया है ( पद्य १, ८०, ८१, १६६ ) | कर्मकाण्ड का कट्टरता से खंडन किया है । तीर्थयात्रा, मूर्तिपूजा, मन्त्र तन्त्र आदि सबको व्यर्थं बताते हुए आत्म शुद्धि पर बल दिया है । कवि ने अनेक सांकेतिक शब्दों द्वारा भाव को अभिव्यक्त किया है । जैसे पांच इन्द्रियों को पांच बैल, आत्मा को नन्दन कानन, मन को करहा - करभ ( उष्ट), देह को देवालय या कुटी, आत्मा को शिव, इन्द्रिय वृत्तियों को शक्ति इत्यादि । अपने को स्त्री
१. तुलना कीजिये परमप्पयासु २.११०, पृ० २७१
२. दे० एनल्स आफ भंडारकर ओरियंटल रिसर्च इंस्टिट्यूट जिल्द १२, सन् १९३१ ई०, पृ० १५२. डा० उपाध्ये ने ऐसे २४ दोहों का निर्देश किया है जो रामसिंह के और योगीन्दु के ग्रंथ में समान हैं।