SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 282
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६४ अपभ्रंश-साहित्य चोड़े सुशोभित हो रहे थे। तलवार बिजली की चमक की तरह चमचमा रही थी। शरीर टूट टूट कर गिरने लगे, शरीर पर रक्त धारायें बहने लगीं। घोड़ों का शरीर रुधिर तरंगों से रंजित हो गया, मानो क्रोध शरीर छोड़ वहां लग गया हो। सब लोग युद्ध देख रहे थे और अर्जुन एवं कर्ण के युद्ध की कथा की कल्पना कर रहे थे। • इसी प्रसंग में असलान के रणभूमि से मुंह मोड़ लेने पर कीर्तिसिंह की उदारता का परिचय मिलता है। "जइ रण भग्गसि तइ तो काअर, अरु तोइ मारइ से पुनु काअर।" (वही पृष्ठ ११२) इस प्रकार काव्यगत भिन्न-भिन्न वर्णनों को देखने से प्रतीत होता है कि कवि के अन्दर वर्णनों का सहज प्रत्यक्ष चित्र अंकित करने की क्षमता थी। किन्तु वर्णनों में संवेदना और हृदयस्पर्शिता नहीं। काव्य में कवि की उत्कृष्ट कल्पना और प्रतिभा के दर्शन नहीं होते । कवि की आरम्भिक अवस्था के कारण संभवतः उसका काव्य-सौन्दर्य निखर नहीं सका। भाषा-काव्य में गद्य का प्रयोग भी स्थान-स्थान पर मिलता है। इस दृष्टि से इसे चंपू भी कहा जा सकता है । ग्रंथ की भाषा मैथिल अपभ्रंश है जो उत्तरकालीन अपभ्रंश का रूप है । इसमें संस्कृत पदावली, प्राकृत शब्द-योजना, अरबी फारसी के शब्दों का प्रयोग और मैथिली का प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है। गद्य में तत्सम प्रधान संस्कृत पदावली और गाथाओं में प्राकृत प्रभाव अधिक उदग्र है । पद्य के समान गद्य में भी तुक का प्रयोग मिलता है। जैसे "हृदय गिरि कन्दरा निद्राण पित वैरि केशरी जागु" (पृ०१८) "विस्मृत स्वामि शोकहु, कुटिल राजनीति चतुरहु" (पृ० २०) आदि गद्य वाक्यांशों में संस्कृत पदयोजना और "पुरिसत्तणेन पुरिसओ" इत्यादि और “सो पुरिसओ जसु मानो" इत्यादि पद्यों (पृ० ६) में प्राकृत का प्रभाव स्पष्ट है। तुर्कों मुसलमानों के वर्णन में बाज़, सलाम, मोजा, कलीमा, कसीदा, कबाबा, पएदा (प्यादा) बांग, रोजा, षाण उमरा, महल, मजेदे, सुरतान (सुल्तान), दारिगह, नियाजगह, उज्जीर (वजीर) खोदालम्ब, पातिसाह, फौद आदि अनेक अरबी फारसी के शब्दों का प्रयोग मिलता है। इन शब्दों को उच्चारण की सुविधा के लिए तोड़ मरोड़ कर प्रयोग में लाया गया है। छन्द संस्कृत के पद्यों में मालिनी, शार्दूल विक्रीड़ित आदि संस्कृत के छन्दों का प्रयोग हुआ है। अन्यत्र दोहा, छप्पय, मणवहला, गीतिका, भुजंगप्रयात, पद्मावती, निशिपाल, मधुकर, णाराच, अरिल्ल इत्यादि छन्द प्रयुक्त हुए हैं। __इस प्रकार जैन धर्म सम्बन्धी विषय के अतिरिक्त लौकिक विषय को लेकर लिखे गए काव्यों की संख्या अत्यन्त अल्प है। संदेश रासक और कीर्तिलता के समान अन्य
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy