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अपभ्रंश खंडकाव्य ( लौकिक )
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की रचना ही न हुई ऐसी कल्पना असंगत सी प्रतीत होती है । इस प्रकार की अन्य रचनायें संभवतः लिखी गई होंगी किन्तु उनका जैन भण्डारों में या तो प्रवेश नहीं हो सका या उनका उचित संरक्षण न हो सका। जो कुछ भी हो इस प्रकार के खंड काव्यों की संख्या वर्तमान उपलब्ध अपभ्रंश खंडकाव्यों में अतीव स्वल्प है। संदेश रासक और कीर्तिलता ये दोनों काव्य अपभ्रंश साहित्य के उत्तर काल की रचनायें हैं और उत्तर कालीन साहित्य के इस रूप को प्रदर्शित करने के लिए पर्याप्त हैं ।