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________________ २५८ अपभ्रंश-साहित्य पति गया है, चन्द्रमुखी कमलाक्षी वह विरहिणी लम्बी-लम्बी आहें भरने लगी, हाथ की अंगुलियों को चटकाती हुई गद्गद् वाणी से भरी पवनाहत कदली के समान वह मुग्धा कम्पित हो उठी । क्षण भर रो कर, आँखें पोंछ कर फिर बोली। भाषा में लोकोक्तियों और वाग्धाराओं का प्रयोग भी मिलता है : "सप्पुरिसह मरणा अहिउ, पर परिहव संताउ" (२.७६) सज्जन के लिए पर परिभव मरण से भी अधिक दुःखदायी होता है। (संभावितस्य चाकोतिर्मरणादतिरिच्यते--गीता, २.३४) "सिंगत्य गइय उवाडयणि, पिक्ख हराविय णिअ सवर्ण" गर्दभी सींगों के लिए गई, देखो अपने कान भी खो आई। ग्रन्थ की भाषा में अनेक शब्दों का रूप हिन्दी शब्दों के बहुत निकट है। कहीं-कहीं पंजाबी शब्दों का आभास भी मिल जाता है।' छंद :--काव्य में अनेक प्रकार के छन्दों का प्रयोग किया गया है। भिन्न-भिन्न छन्दों का प्रयोग रासक की विशेषता मानी गई है। ग्रन्थ में निम्नलिखित छन्दों का प्रयोग मिलता है : गाहा, रड्डा, पद्धडिया, डोमिलय, रासा, दोहा, कामिणी मोहण, वत्यु, मालिणी, अडिल्ला, फुल्लय, मडिल्ला, चूडिल्लय, खडहडय, दुवइ, नंदिणी, भमरावलि, रमणिज्ज । इन छन्दों में से अधिकांश मात्रिक छन्द हैं। रासा छन्द का प्रयोग काव्य में बहुलता से किया गया है। १. उदाहरण के लिए कुछ शब्द रूप नीचे दिए जाते हैं। कोष्टक में अंक संख्या पद्य संख्या सूचित करती है। रहइ--रहता है (१८)। मोडइ--मोडती है (२५)। उत्तावलि--उतावली (२६)। छुडवि खिसिय---छूट कर खिसक गई (२६)। फुडवि--फोड़ कर (२८)। बोलावियउ--बुलाया (४१)। चडाइयइ--चढ़ाया जाता है (५२) । ढक्क-ढाक, सीसम-शीशम, आमख्य--अमरूद, लेसूडलसूडा, नायरंग--नारंगी, बेरि--बेर, भीड--भीड़, लक्क--कटि (पंजाबी) (पृष्ठ २४-२५)। मन्नाइ--मनाना (७१)। समाणा--समा गये (८०)। पढिय--पढ़ी (८३)। बाउलिय--बावली (९४)। फिरंतये--फिरते हुए (१०३)। हुई हुई (१३५)। चडिउ--चढ़े (१४४) । मच्छर भय-- मच्छरों का भय (१४६)। बदलिण-बादल (१४८)। घुट्टिवि--चूंट चूंट पी कर (१६२)। इकट्ठ--इकट्ठा, सारा (१८०)। महमहइ--महकता है (१८३)। इक्कल्लिय--अकेली (१९०)। २. संदेश रासक, भूमिका, पृष्ठ ७५ ।
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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