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________________ अपभ्रंश-खंडकाव्य (लौकिक) कोतिलता' विद्यापति-रचित कीतिलता एक ऐतिहासिक चरित काव्य है जिस में कवि ने अपने प्रथम आश्रयदाता राजा कीर्तिसिंह के यश का गान किया है। अपभ्रंश में इस प्रकार का काव्य अभी तक एकमात्र यही उपलब्ध हुआ है । इस प्रकार के अन्य काव्य भी लिखे गये होंगे किन्तु वे जैनधर्म सम्बन्धी कृति न होने के कारण संभवतः सुरक्षा न पा सके। ___ कविपरिचय-विद्यापति ठक्कुर मैथिल ब्राह्मण थे । दरभंगा जिले के अन्तर्गत विसपी ग्राम इनका वास स्थान था। इनके वंश के पूर्वज सभी असाधारण पण्डित थे। इनके पिता गणपति ठक्कुर कीर्तिलता के नायक कीर्तिसिंह के पिता गणेश्वर के सभापण्डित तथा मन्त्री थे। विद्यापति स्वयं संस्कृत और मैथिली के पण्डित थे। इन्होंने अनेक ग्रन्थ इन भाषाओं लिखे थे। विद्यापति ने ८७-८८ वर्ष की लम्बी आयु भोगी। अपने जीवनकाल में इन्होंने जीवन की सभी अवस्थाओं का अनुभव प्राप्त किया, जीवन के सभी रसों का आस्वादन किया। इन्होंने वीरता और वदान्यता की भूरि भूरि प्रशंसा की है। इनके शृंगार रस पूरित पद इनकी युवावस्था की रसिकता की ओर संकेत करते हैं । वृद्धावस्था में इनमें वैराग्य और भक्ति की भावना जाग्रत हो उठी, इसका आभास भी इनके पदों से मिलता है। विद्यापति का काल १३६० ई० से लेकर १४४७ ई० तक अर्थात् लगभग १५ वीं सदी के मध्य तक कल्पित किया गया है। कीर्तिलता चार पल्लवों (भागों) में पल्लवित हुई है। यह विद्यापति की सर्वप्रथम रचना है इसकी रचना कवि ने २० वर्ष की अवस्था में की थी। ___ कयानक-ग्रंथ का आरम्भ संस्कृत में पार्वती और शिव के मंगलाचरण से किया गया है । फिर सरस्वती की वन्दना है तदनन्तर कवि कहता है-कलियुग में घर-घर में काव्य मिलते हैं, नगर-नगर में श्रोता और देश-देश में रसज्ञाता, किन्तु संसार में दाता दुर्लभ है। कोर्तिसिंह उदार हृदय दाता हैं उनको कीर्ति इस काव्य में प्रथित की जाती है। आगे कवि आत्मविनय के अनन्तर सज्जन प्रशंसा और दुर्जन निन्दा करता हुआ कहता है कि सज्जन मेरे काव्य की प्रशंसा करेंगे और दुर्जन निन्दा। निश्चय से चन्द्रमा अमृत की वर्षा करता है और विषधर विष ही उगलता है : १. डा० बाबूराम सक्सेना द्वारा संपादित, इंडियन प्रेस प्रयाग से प्रकाशित, वि० सं० १९८६ । २. कीतिलता भूमिका पृ० ११-१३ ३. वही भूमिका प० ७-९ ४. गेहे गेहे कलौ काव्यं श्रोता तस्य पुरे पुरे। देशे देशे रसज्ञाता दाता जगति दुर्लभः॥ वही पृ० ४
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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