SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 265
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आठवाँ अध्याय अपभ्रंश-खराड काव्य (लौकिक) सन्देश रासक' यह कवि अद्दहमाण-अब्दुल रहमान-का लिखा हुआ एक खंड काव्य है । इसमें तीन प्रक्रम एवं २२३ पद हैं। धर्म-निरपेक्ष, लौकिक प्रेम भावना की अभिव्यक्ति इस काव्य में मिलती है । अपभ्रंश के प्राप्त काव्यों में से यही एक काव्य है जो कि एक मुसलमान कवि द्वारा लिखा हुआ है। अद्दहमाण ही सर्वप्रथम मुसलमान कवि हैं जिन्होंने कि भारत की संस्कृति को अभिव्यक्त करने वाली साहित्यिक भाषा में रचना की; हिन्दु सभ्यता या भारतीय सभ्यता को अपना कर प्रचलित भारतीय साहित्यिक शैली पर पूर्ण रूप से अधिकार प्राप्त किया। इन्हीं विशेषताओं के कारण यह काव्य विशेष महत्व का है। कवि परिचय--कृति में कवि का नाम अद्दहमाण मिलता है जिसका परिवर्तित रूप अब्दुल रहमान समझा जाता है । कवि पश्चिम भारत में म्लेच्छ देशवासी तन्तुवाय मीरसेन का पुत्र था। यह प्राकृत काव्य तथा गीतों की रचना में प्रसिद्ध था। संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश का विद्वान् था। कवि के अपभ्रंश और प्राकृत ज्ञान का आभास वर्तमान ग्रंथ से मिलता है। ___काव्य में पूर्वकालीन प्राकृत और संस्कृत कवियों के कुछ पद्य रूपान्तर से मिलते हैं। ऐसे पद्यों का आगे ययास्थान निर्देश कर दिया गया है । कवि ने अपने पूर्ववर्ती अनेक विद्वानों और अपभ्रंश, संस्कृत, प्राकृत एवं पैशाची भाषा के कवियों का वन्दन और आदरपूर्वक स्मरण किया है। कवि ने एक स्थान पर प्राकृत काव्य और वेद का उल्लेख किया है। इसी प्रकार नलचरित्र, भारत, रामायणादि के उल्लेख से विदित होता है १. श्री जिन विजय मुनि और श्री हरि वल्लभ भायाणी द्वारा संपादित, भारतीय विद्या भवन बंबई से प्रकाशित, वि० सं० २००१. २. सं० रा० १-३-४ सन्देश रासक के स्थल निर्देश में सर्वत्र प्रथम अंक प्रक्रम का और द्वितीय अंक पद्य संख्या का सूचक होगा। ३. सं० रा० १.५-६ पुव्वच्छेयाण णमो सुकईण य सद्दसत्य कुसलेण । तिय लोये सुच्छंदे जेहिं कयं जंहि णिद्दिसैं॥ ५ अवहट्टय-सक्कय-पाइयंमि पेसाइयंमि भासाए । लखण छंदाहरेण सुकइतं भूसियं जेहि ॥ ६ ४. सं० रा० पद्य ४३ ५. वही पद्य ४४
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy