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________________ २४६ अपभ्रंश-साहित्य सब काज । 'सीलु बड़ा संसार महि सलि सहि इह भवि पर भवि सुहु लहइं आसि भर्णाहं मुणिराज ॥' चौथी संधि ये दोहे अपभ्रंश के उस स्वरूप को प्रकट करते हैं जब कि वह खड़ी बोली रूप में परिवर्तित हो रही थी । हेमचन्द्र के निम्नलिखित दोहे से इन दोहों की तुलना कीजिये : "भल्ला हुआ जो मारिआ बहिणि महारा कंतु । लज्जेज्जं तु वयंसियहु जइ भग्गा घर एंतु ॥” दोनों की भाषा में शब्दों का आकारान्त रूप मिलता है (जैसे, भल्ला, बड़ा, भग्गा, चुक्का) जो खड़ी बोली का लक्षण है । खड़ी बोली ने हेमचन्द्र के दोहे से चल कर भगवती दास के दोहों को पार करके आधुनिक स्वरूप को धारण किया । भगवती दास के गुरु भट्टारक महेन्द्र सेन दिल्ली निवासी थे। दिल्ली नगर की भाषा होने के कारण संभवतः आकारान्त स्वरूपवाली अपभ्रंश ही नागर भाषा है जो खड़ी बोली अथवा नागरी की जननी है । इन कृतियों के अतिरिक्त अनेक कृतियाँ हस्तलिखित रूप में अप्रकाशित हैं और जैन भण्डारों में पड़ी हैं । अनेक कृतियों का उल्लेख पाटण ( पत्तन ) भंडार की ग्रंथ सूची में मिलता है।' इस सामग्री के प्रकाश में न आने से इस पर विचार अभी संभव नहीं । इस अध्याय में जिन भी खंड काव्यों का विवेचन किया गया है, वे सब इस प्रकार के हैं जिनमें धार्मिक तत्व की प्रधानता है । यदि कोई प्रेमकथा है तो वह भी धार्मिक आवरण से आवृत है, यदि कोई साहस को प्रदर्शित करने वाली कथा है तो वह भी उसी आवरण से आवृत । इस प्रकार ये सब खंडकाव्य कवियों ने धार्मिक दृष्टिकोण से लिखे । इस दृष्टिकोण को छोड़ कर शुद्ध प्रेमकथा, राजा की विजय आदि धार्मिक दृष्टि- निरपेक्ष मानव जीवन से सम्बन्ध रखने वाले लौकिक और ऐतिहासिक प्रबंध काव्यों का विवेचन अगले अध्याय में किया जायगा । १. ए डिस्क्रिप्टिव कैटेलाग आफ मैनुस्क्रिप्ट्स इन दी जैन भंडार ऐट पटना, गायकवाड़ ओरियंटल सिरीज जिल्द सं० ७६, ओरियंटल इंस्टिट्यूट बड़ौदा १९३७ । इसमें उल्लिखित कुछ ग्रंथ - - - - सुलसा चरित्र । ( वही पृ० १८२ ), भव्यचरितम् ( वही पृ० २६५), मल्लिनाथ चरित ( वही पृ० २७०), सुभद्रा चरित ( वही पृ० १२८), वयसामि चरिउ ( वही पू० १९० ) इत्यादि । "
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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