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अपभ्रंश-खंडकाव्य (धार्मिक)
२४१ काल में इन्होंने अपने ग्रंथों का प्रगयन किया। इनके लिखे २५ के लगभग ग्रंथों का उल्लेख मिलता है। जिन में से अनेक की हस्तलिखित प्रतियाँ भी अभी उपलब्ध नहीं हो सकों।' आमेर शास्त्र भण्डार में रयधू के लिखे निम्नलिखित ग्रंथों की हस्तलिखित प्रतियाँ वर्तमान हैं :
१. आत्म संबोध काव्य (प्र० सं० पृष्ठ ८५) २. धनकुमार चरित्र (प्र० सं० पृष्ठ १०४) ३. पद्म पुराण
(प्र० सं० पृष्ठ ११६) . ४. मेवेश्वर चरित्र
(प्र० सं० पृष्ठ १५६) ५. श्रीपाल चरित्र
(प्र० सं० पृष्ठ १७८) ६. सन्मति जिन चरित्र (३० सं० पृष्ठ १८१)
रयधू के पिता का नाम हरिसिंह था। यशःकीर्ति एवं कुमार सेन इन के गुरु थे ।' रयधू ने आली कृतियों में अपने आश्रयदाता और ग्रंथ-रचना की प्रेरणा देने वाले श्रावकों की मंगल कामना एवं आशीर्वादपरक अनेक संस्कृत पद्य रचे । इन पद्यों से इनके संस्कृतज्ञ होने की कल्पना की जा सकती है। इनकी कृतियों की शैली के आधार पर १५ वीं शताब्दी का अंतिम चतुर्थाश और १६वों शताब्दी का प्रारम्भिक चतुर्था व इनका रचना फाल अनुभित किया जा सकता है।
सुकौसल चरित की रचना रयव ने आने गुरु कुमार सेन के आदेशानुसार रणमल्ल वणिक् के आश्रय में रहते हुए की । उस समय तोमर वंशीय राजा डूंगरसिंह शासन करते थे। कवि ने माघ मास कृष्णपक्ष की दशमी तिथि को वि० सं० १४९६ में ग्रंथ की रचना की।
१. इनके ग्रंथों की सूची पं० परमानन्द जैन ने अनेकान्त, वर्ष ५, किरण १२, जनवरी सन् १९४३, पृ० ४०४ में दी है। श्री अगरचन्द नाहटा इनमें से कुछ को भ्रान्तिपूर्ण मानते हैं। जिसका निर्देश उन्होंने अनेकान्त वर्ष ६, पृ० ३७४ पर किया है। २. श्रीपाल चरित्र को अन्तिम प्रशस्ति (प्रशस्ति संग्रह पृ० १८०), 'हर सिंघ संघविहु पुत्तु रइबू कइ गुण गण निलउ।' सन्मति जिन चरित्र को प्रशस्ति (प्र० सं०पृ० १८२) और मेवेश्वर चरित्र
को प्रशस्ति (वही पृ० १५७) में भी ऐसा ही निर्देश है। ३. सुकौशल चरित्र में रयधू ने कुमार सेन को अपना गुरु कहा है और सन्मति जिन
चरित्र में यशः कीत्ति को। कवि ने मेघेश्वर चरित और सम्मत गुण णिहाण में यशः कोत्ति का गुणगान किया है। अनेकान्त वर्ष १०, किरण १२, पृ० ३८१ ४. अनेकान्त वर्ष ५, किरण १२, पृ० ४०४ ५. श्री रामजी उपाध्याय-सुकौशल चरित, जैन सिद्धान्त भास्कर, भाग १०, किरण २.