SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 260
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४२ अपभ्रंश-साहित्य "सिरि विक्कम समयंतरालि ......... चउदह संवच्छर अन्न छण्णउव अहिय पुणु जाय पुण्ण । माहहु जि किण्ह वहमा विणम्मि, अणुराहरिक्खि पयडियसकम्भि। गोवागिरि डुंगरणिवहु रज्जि, पह पालंतइ अरिरायतज्ज।' (४. २३) कथानक-कवि ने चार संधियों में सुकौशल मुनि के चरित्र का वर्णन किया है । ग्रंथ रचना के आरम्भ में कवि ने वन्दना, आश्रयदाता का परिचय और आत्म नम्रता का प्रदर्शन किया है । कवि अपने आप को जड़मति और अगर्व कहता है (१.५), शब्दार्थ पिंगल-ज्ञानरहित बतलाता है (१.३.४) । कवि मगध देश, राजगृह और राजा श्रेणिक का वर्णन करता है। श्रेणिक के जिनेश्वर से केवली सुकौशल का चरित्र पूछने पर गणधर कथा कहते हैं। ____ इक्ष्वाकु वंश में कीर्तिधर नाम के एक प्रसिद्ध राजा थे। उल्का देखने के पश्चात् इन्हें प्रतीत हुआ कि संसार असार है । उनकी संन्यासी होकर जीवन बिताने की इच्छा हुई किन्तु मन्त्रियों के कहने पर इन्होंने निश्चय किया कि जब तक पुत्रोत्पन्न न होगा मैं संन्यासी न होऊँगा। कई वर्षों तक इन्हें कोई पुत्र उत्पन्न न हुआ। एक दिन इनकी रानी सहदेवी एक जैन मन्दिर में गई । वहाँ एक मुनि ने बताया कि तुम्हें पुत्र तो होगा किन्तु वह किसी भी मुनि को देख संन्यासी हो जायगा। __कुछ समय के बाद रानी के एक पुत्र उत्पन्न हुआ। यह समाचार राजा से छिपाने का प्रयत्न किया गया। किन्तु राजा ने यह समाचार जान ही लिया और गज्यभार कुमार को सौंप वह जंगल में चले गये। इस पुत्र का नाम सुकौशल रखा गया। - रानी को. पतिवियोग सहना पड़ा। साथ ही उसे यह भी भय था कि कही पुत्र भी संन्यासी न हो जाय। युवावस्था में राजकुमार का विवाह बत्तीस राजकुमारियों ने कर दिया गया और वह भोग विलास से महल में जीवन बिताने लगा। उसे बाहर जाने की आज्ञा न थी । किसी मुनि को नगर में आने की आज्ञा न थी। यदि कोई मुनि दिखाई दे जाता तो उसको पीटा जाता। __एक दिन राजकुमार के पिता जो मनि हो गये थे नगर में आये। उनकी भी वही दुर्गति हुई। राजकुमार ने अट्टालिका के ऊपर से मुनि को देख लिया और सूपकार से उस को ज्ञात हुआ कि मुनि उसके पिता कीर्ति धवल थे और मुनियों का नगर में प्रवेश निषिद्ध होने के कारण उन्हें बाँधा गया। जव राजकुमार को यह पता चला तो उसने भी राजपाट छोड़ संन्यास ले लिया और अपने पिता कीर्ति धवल का शिष्य बन जैन धर्म के व्रतों एवं आचारों का पालन करते हुए जीवन व्यतीत किया। सहदेवी मरने के बाद व्याघ्री हुई क्योंकि वह सांसारिक मोह माया में पड़ी हुई थी । एक दिन उसने अत्यधिक क्षुधात होने पर पर्वत पर घूमते हुए सुकौशल भुनि को खा लिया। सुकौशल ने मृत्यु के बाद मोक्ष पद पाया । सहदेवी को कीति धवल ने अपने
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy