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अपभ्रंश-साहित्य ख्वाहंकारिउ काम वीर, किउ तासु अंगु मलिनहु सरीरु। तहु नयणुप्पलि निवसेइ लछि, जा पुष्व वसिय हरि पिहुल वछि। तें कारणे जहिं जहि देइ दिट्ठि, तहि तहिं ऊहट्टइ दुच्छ सिट्ठि । जसु संगरि संमृहुं धणुहु होइ, गहु पुणु विचित्त पडिवक्खु कोइ ।
मुहिं निवसइ सरसइ जासु निच्च, पयमित्तु लहइ कहिं तहिं असच्च । पत्ता
तिहुयणि बहु गुणजणि तसु पडिछंदु न दोसइ । होसइ गुण लेसइ जसु वाई सरि सी सइ ॥' १.९
अह नारी वर्णन--
सिरिकताणामें तास कंता, बहुरूव लछि सोहगा वंता। जीये मुह इंदहुलंण वाणउ, जं पुण्णिम चंबहु उवमाणउ । तारु तरलु णिम्मिलु जुउ णित्तहं, णं अलि उरि ठिउ केइय पत्तहं ।
जइ सवणू जुवलु सोहाविलासु, णं मयण विहंगम धरण पासु। . वच्छच्छलु नं पीऊस कुंभ, अह मयण गंध गय पीण कुंभ।
अइ क्खीणु मज्झु णं पिसुणजणू, थण रमण गुरुत्तणि कुवियमणू।
जह पिहुल णियंवउ अप्पमाणु, ठिउ मयणराय पीढहु समाणु । घत्ता
हा इय मयणहु, जय जय जयणहु, ऊरु जुअलु घर तोरणु।
अइ कोमलु रत्तुप्पलु जिय पय कतिहिं चोरणु ॥२ . २. १०. निम्नलिखित घत्ता से ग्रंथ समाप्त किया गया है
जा चंद दिवायर, सव्व वि सायर, जा कुलपव्वय भूवलउ ।
ता एहु पवट्टउ, हियइ चहुट्टउ, सरसइ देविहिं मुहतिलउ ॥ ११.२९ अन्य ग्रंथों के समान छंदों की विविधता इस ग्रंथ में दृष्टिगत नहीं होती।
सुकौशल चरित यह रयधू का लिखा हुआ अप्रकाशित ग्रंथ है। इसकी हस्तलिखित प्रति पंचायती मंदिर देहली में वर्तमान है।
अपभ्रंश भाषा में सबसे अधिक रचनाएँ लिखने वाले यही कवि हैं। यह ग्वालियर के निवासी थे और वहीं तोमर वंशी राजा डूंगर सिंह और उनके पुत्र कीति सिंह के राज्य
१. थेरिव-वृद्धा के समान, दीर्घ नारी के समान । सिरि चुवंगु--धरणेंद्र अथवा
कृष्ण। सककुवि ..... पयासु-राजा के प्रतिबिंब को ले कर विधाता ने पहिले
शक्र का निर्माण किया। असच्चु--असत्य। २. अलि उरि--भ्रमर के ऊपर। ऊरु जुअलु-जंघा युगल। जिय-जीता।