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________________ अपभ्रंश खंडकाव्य (धार्मिक) २३९ (उन्मत्त ग्राम) के रहने वाले थे। संधियों की पुष्पिकाओं में सिद्धपाल का नाम भी लिया गया है । कृति में कवि ने न तो रचना-काल दिया है और न अपनी गुरु परंपरा का निर्देश किया है । अतः निश्चय रूप से नहीं कहा जा सकता कि चन्द्रप्रभ चरित्र का रचयिता यशःकीर्ति और हरिवंश पुराण एवं पाण्डव पुराण का रचयिता यशःकीर्ति एक ही हैं या भिन्न-भिन्न व्यक्ति । चंद्रप्रभ चरित्र ग्यारह संधियों की कृति है। इसमें कवि ने आठवें जिन चंद्रप्रभ की कथा का उल्लेख किया है। ग्रंथ का आरम्भ मंगलाचरण, सज्जन दुर्जन स्मरण से होता है। तदनन्तर कवि मंगलवती पुरी के राजा कनकप्रभ का वर्णन करता है । संसार को असार जान राजा अपने पुत्र पद्मनाभ को राज्य देकर विरक्त हो जाता है। दूसरी से पांचवीं संधियों तक पद्मनाभ का चरित्र वर्णन और श्रीवर मुनि से राजा का अपने पूर्व जन्म के वृत्तान्त सुनने का उल्लेख है । छठी संधि में राजा पद्मनाभ और एक दूसरे राजा पृथ्वीपाल के बीच हुए युद्ध का वर्णन है। राजा विजित होता है किन्तु युद्ध से पद्मनाभ विरक्त हो जाता है और राज्यभार अपने पुत्र को देकर श्रीवर मुनि से दीक्षा ले तपस्वी जीवन बिताने लगता है। अगली संधियों में पद्ननाभ के चन्द्रपुरी के राजा महासेन के यहाँ चंद्रप्रभ रूप में जन्म लेने, संसार से विरक्त हो केवल ज्ञान प्राप्त कर अंत में निर्वाण पद प्राप्त करने आदि का वर्णन है। कृति में इतिवृत्तात्मकता की प्रधानता है । कहीं कहीं कुछ काव्यात्मक स्थल भी मिल जाते हैं। कवि की कविता का आभास निम्नलिखित उद्धरणों से मिल सकता है तहि कणयप्पह नामेण राउ, जं पिछिवि सुरवइ हुउ विराउ । जसु भमई कित्ति भुवणंतरश्मि, थेरिव अइसंकडि निय घरम्मि । जसु तेय जलणि नं दीवियंगु, जलनिहि सलिलट्ठिउ सिरिचु वंगु । आइच्चु वि दिणि दिणि देइ झंप, तत्तअ तत्तु जय जणिय कंप। सक्कुवि निप्पाइउ पढम् तासु, अब्भास करणि पडिमहं पयासु । १. गुज्जर देसह उमत्तगामु तहिं छद्दां सुउ हुउ दोण गाम् । सिद्धउ तहो गंदणु भव्व बंधु, जिण धम्मु भारि जंदिण्णु खंधु । तहु लहु जायउ सिरि कुमर सिंह, कलि काल करिंदहो हणणसींहु । तहो सुउ संजायउ सिद्ध पालु, जिण पुज्जदाणु गुण गण रमालु । तहो उवरोहे इय कियउ गंथु, हउँ ण मुणणि किं पि विसत्थ गंथु । ___ प्रशस्ति संग्रह पु० ९८-९९ २. इय सिरि चंदप्पह चरिए महाकव्वे, महाकइ जसुकित्ति विरइए, महाभव्व सिद्ध पाल सवण भूसणे चंदप्पहं सामि णिन्वाण गमणो णाम एयारहमो संधी परिछेउ सम्मतो।
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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