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से अनेक के ग्रंथों का भी उल्लेख किया है । "
इस ग्रंथ की १८ संधियों में कवि ने जैन संप्रदाय के प्रथम कामदेव बाहुबलि के चरित्र का वर्णन किया है । ग्रंथ अपभ्रंश काल के उत्तरकाल की रचना है अतएव कवि पूर्ववर्त्ती अनेक कवियों की लम्बी सूची दे सका ।
ग्रंथ का आरम्भ निम्नलिखित पद्य से हुआ है:
स्वस्ति । ॐ नमो वीतरागाय ।
सिरि रिसहणाह जिण पय जुयलु, पणविवि णासिय पुणु पढम कामएवहो चरितु, आहासमि
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अपभ्रंश - साहित्य
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इसके अनन्तर कवि ने चौबीस तीर्थंकरों का स्तवन किया है । तदनन्तर सरस्वती वन्दन कर कवि ने अपना परिचय दिया है । कवि की वासद्धर से भेंट होती है । कवि
कलिमलु । मंगलु ॥
१. वाएसरि कीला सरय वास, हुअ श्रसि महाकइ झुणि पयास । सुअ पवणु ड्डाविय कुमयरेणु, कइ चक्कवट्टि सिरि धीरसेण । महिमंडल वणिउं विवह बिंदि, वायरण कारि सिरि देवणंदि । जइगेंद णामु जड यण दुलक्खु, किउ जेण पसिद्धु सवाय लक्खु । सम्मत्तारु वसु राय भव्वु, दंसण पमाणु वरु रयउ कव्वु । सिरि वज्ज सूरि गणि गुण णिहाणु, विरइउ मह छद्दंसण पमाणु । महसेण महामइ विउ समहिउ, घण णाय सुलोयण चरिउ कहिउ । रविसेणें पउम चरितु वुत्तु, जिणसेणें हरिवंसु वि पवित्तु । मुणि जडिलि जडत्तणि वारणत्थु णवरंग चरिउ खंडणु पयत्थु । दिणयरसेणें कंदप्प चरिउ, वित्थरिउ महिहिं णवरसहं भरिउ । जिण पास चरिउ अइसय वसेण, विरइउ मुनि पुंगव पउमसेण । अमियाराहण विरइय विचित्त, गणि अंवरसेण भवदोस चत्त । चंदप्पह चरिउ मणोहि राम, मृणि विल्हुसेण किउ धम्म धामु । घणयत्त चरिउ
चउवग्गसारु, अवरेह विहिउ णाणा पयारु ।
सद्दत्य वासु, अणुपेहा कय संकप्प णासु । णरदेव वुत्तु, कइ असग
विहिउ वीरहो चरितु ।
मुणि सीहणंदि ण व यारणेहु सिरि सिद्धि सेण पवयण दिणोउ, जिणसेणें गोविंदु कइंदें सणकुमार, कह रयण समुद्दहो
विरइउ
आरिसेउ ।
लद्धयारु ।
जय धवल सिद्ध गुण मुणिउंभेउ, सुय सालिहत्थु कइ
जीवदेउ ।
वर पउम चरिउ किउ सुकइ सेढि, इय अवर जाय धरवलय पीढे । घत्ता-- -- चउमुहुं
वीरु भणु ।
दो तेणाण दुमणि
गुणु ॥
सयंभु कइ, पुफ्फयंतु पुणु उज्जोय
कर, हउ दीवो वमु हीणु
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