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अपभ्रंश-साहित्य की नदी कवि ने देखी और पार की । नदी को पार कर कवि हरियाना प्रदेश के दिल्ली नामक नगर में गया। ___ कवि ने दिल्ली नगर का वर्णन भी अलंकृत शैली में किया है। वहां की ऊँची ऊंची शालाओं, विशाल रणमंडपों, सुन्दर मन्दिरों, समद गज घटाओं, गतिशील तुरंगों, स्त्रियों की पद नूपुर-ध्वनि को सुनकर नाचते हुए मयूरों और विशाल हट्ट मार्गों का निर्देश किया गया है। कवि वर्णन करता है--
जहिं गयणामंडला लग्गु सालु, रण मंडव परिमंडिउ विसालु । गोउर सिरि कलसा हय पयंगु, जल पूरिय परिहा लिंगि यंगु । जहि जण मण णयणाणंदिराई, मणियर गण मंडिय मंदिराई । जहिं चउदिसु सोहहिं घणवणाई, णायरणर खयर सुहावणाई। जहिं समय करडि घड घड हडंति, पडिसवें दिसि विदिसि विफुडंति । जहिं पवण गमण धाविर तुरंग, णं वारि रासि भंगुर तरंग । पविउलु अणंग सरु जहि विहाइ, रयणायर सइं अवयरिउ णाई। जहिं तिय पयणेउर रउ सुणेवि, हरिसें सिहि णच्चइ तणु धुणेवि । जहि मणुहरु रेहइ हट्ट मग्गु, णीसेस वत्थु संवियस मग्गु । कातंतं पिव पंजी समिद्ध, णव कामि जोव्वण मिव समिद्ध । सुर रमणि यणु व वरणेत्तवत्तु, पेक्खणयर मिव बहु वेस वंतु । वायरणु व साहिय वर सुवण्णु, णाडय पेक्खणयं पिव सपण्णु । चक्कवइ व वरहा अफलिल्लु, संच्चुण्ण गाइं सहसणिल्लु । दप्पुब्भड भड तोणु व कणिल्लु, सविणय सीसु व बहु गोर सिल्लु ।
पारावार व वित्थरिय संखु, तिहुअण वइ गुण णियर व असंखु । घत्ता --
णयण मिव सतारउ, सरुव सहारउ, पउर माणु कामिणि यणु व । संगरु व सणायउ, गहु व सरायउ, णिहय कंसु णारायणु व॥'
अन्तिम घता में कवि ने बाण की श्लिष्ट शैली का प्रयोग करते हुए दिल्ली नगर की अनेक वस्तुओं से तुलना की है--
वह नगर नयन के समान तारक युक्त था, सरोवर के समान हार युक्त और हार नामक जीवों से युक्त था, कामिनी जन के समान प्रचुर मान वाला था, युद्धभूमि के समान नाग सहित और न्याय युक्त था, नभ के समान चंद्र सहित एवं राजसहित था
१. पयंगु--पतंग, सूर्य । समय-समद । पयणेउर रउ--पद नूपुर रव । कातंतं
.."समिद्ध-कातंत्र व्याकरण के समान पंजिका से युक्त एवं प्रचुर अर्थ युक्त । साहिय 'सुवण्णु-जहां सोने का वर्ण या अक्षर परखा जा रहा था। संख-- मर्यादा।