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________________ २१३ अपभ्रंश-खंडकाव्य (धार्मिक) और कंसघाती नारायण के समान वहां कांसा पीटा जा रहा था। इसी प्रसंग में कवि ने अनंगपाल और हम्मीर का भी निर्देश किया है जहि असिवर तोडिय रिउ कवाल, णरणाहु पसिद्ध अणंग वालु । णिरु दल वट्टिय हम्मीर वीर, वंदियण विद पइव्वण चीर ॥ युद्ध वर्णनों में कवि ने भावान कूल शब्दों और छन्दों की योजना की है। निम्नलिखित उद्धरण में युद्ध में सैनिकों और क्रियाओं की तीव्र गति अभिव्यक्त होती है तिक्खु कुंतेण केणावि विद्धा हया, रत्त लित्ता वि मत्ता गया णिग्गया। को वि केणा वि मुट्ठी हिए द्धारिउ, को वि केणावि पण्हीएल त्यारिउ । कोवि केणावि आवंतु आलाविउ, कुंजरारिव्व सिग्धं समुद्धाविउ । कोवि केणावि रुद्धो विरुद्धो भडो, कंधरं तोडि णच्चाविऊ णं णडो। कोवि केणावि धावंतु पोमाइउ, तोमरेणोरु वच्छच्छले घाइउ । कोवि केणावि-रुसा भीसणो, वाण जालं मुअंतो महाणीसणो। ४..९ सुकुमाल चरिउ श्रीधर कवि ने इस ग्रंथ की रचना वलड (अहमदाबाद-गुजरात) नगर में राजा गोविन्द चन्द्र के समय में की थी।' ग्रंथ रचना का समय वि० सं० १२०८, आग्रहायण मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया, चन्द्रवार है। ___ कवि ने यह ग्रंथ साहु पीथा के पुत्र पुरवाड वंशोत्पन्न कुमार की प्रेरणा से लिखा। संधि की पुष्पिकाओं में उस के नाम का उल्लेख किया गया है। प्रत्येक संधि के आरम्भ १. एक्कहि दिणि भव्वयण पियारइ, बलडइ नामे गामे मण हारइ । सिरि गोविंद चंद निव पालिए, जणवइ सुहयारय कर लालिए। १.२ २. बारह सयइ गयइ कय हरिसइ, अट्ठोत्तरइ महीयलि बरिसइ । कसण पक्खि आगहणो जायए, तिज्ज दिवसि ससि वासरि मायइ । बारह सइय गत्थं कहइ पद्धडिएहि रवण्णु। जण मण हरणु सुह वित्थरणु एउ अत्थु संपुण्णउं ॥ ६.१७ ३. इय सिरि सुकुमाल सामि मणोहर चरिउ, सुंदर यर गुण रयण नियर भरिए, विवुह सिरि सुकइ सिरिहर विरइए, साहु पीथे पुत्त कुमर नामंकिए,... इत्यादि।
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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