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________________ अपभ्रंश खंडकाव्य (धार्मिक) पुणु पुणु सा पभणइ जणिय ताव, रे रे मयरद्धय खल सहाव । छवि तुहुं वि महु तवहि देहु, सपुरिसहो होइ कि जुत्तु एह । रुद्देण असि यव इ द देहु, भणु महिलहे उप्परि कोण कोहु । पंचवि महं लायवतिणि वाण, अण्णाउ केण हणिहसि अयाण । सय वत्त वत्त लोयह द्धवसाल, जहिं जहि आलोयइ कहिं वि वाल । तह तह आवंत सुहउ भाइ, सुह दंसण भरियड जगु जि णाइ । ५.१ १६९ इस व्याकुलता का पर्यवसान विवाह में होता है । इसी प्रसंग में संध्या और प्रातः सुन्दर वर्णनों के साथ संभोग श्रृंगार का भी कवि ने वर्णन किया है । के संयोग श्रृंगार के वर्णन के प्रसंग में ही कवि ने वसन्तोत्सव, उपवन-विहार और जीड़ा के भी सुन्दर वर्णन प्रस्तुत किये हैं । श्रृंगार रस का अन्ततोगत्वा पर्यवसान शान्त रस में दिखाई देता है । अन्त में सब पात्र तपस्वी और विरक्त हो जाते हैं । वहीं वैराग्य, शान्ति के चित्रों में शान्त रस परिलक्षित होता है । गार के प्रसंग में कवि ने अनेक प्रकार की स्त्रियों का वर्णन किया है । स्त्रियों का भेद अनेक आधारों पर कवि ने प्रदर्शित किया है। पहले विशेष इंगितों के आधार पर स्त्रियों के चार भेद बताये गये हैं--भद्द, मंदा, लय और हंसी । तदनन्तर भिन्न-भिन्न वर्गों के आधार पर भेद किये गये हैं-ऋषि स्त्री, विद्याधरी, यक्षिणी, सारसी, मृगी आदि ( ४.५) । तदनन्तर प्रान्त भेद या देश भेद से उनका विभाग किया गया है— मालविनी, सैंधवी, कोशली, सिंहली, गौड़ी, लाटी, कालिंगी, महाराष्ट्री, सौराष्ट्री आदि । भिन्न-भिन्न देशों के अनुसार उनके स्वभाव का भी दिग्दर्शन कराया गया है ( ४.६ ) । इसके बाद बात, पित्त और कफ की प्रधानता के आधार पर उनका वर्गीकरण किया गया है (४-७) । इसी प्रसंग में मंदा, तीक्ष्णा, तीक्ष्णतरा और शुद्ध, अशुद्ध मिश्र आदि भेदों की ओर निर्देश किया गया है (४.८) ।' डा० रामसिंह तोमर ने इस वर्गीकरण में रीतिकाल की नायिका भेद की प्रवृत्ति के बीज की ओर निर्देश किया है। रानी अभया की परिचारिका पंडिता मेंदूतका रूप देखा जा सकता है । पहिले निर्देश किया जा चुका है कि इस प्रवृत्ति का अस्फुट सा आभास जंबु समि चरिउ ( ४.१४ ) में भी दिखाई देता है । नवीं सन्धि में धाड़ीवाहन के युद्ध प्रसंग में वीररस दिखाई देता है । समुचित छन्द fat गति द्वारा योद्धाओं की गति प्रदर्शित की गई है । अनुरणनात्मक शब्दों के प्रयोग द्वारा शब्द चित्र उपस्थित करने का प्रयत्न किया गया है । निम्नलिखित उद्धरण में राजा धाड़ी १. रामसिंह तोमर - सुदंसण चरिउ, विश्वभारती पत्रिका, खंड ४, अंक ४, अक्तू ०, दिसं०, १९४५, पृ०. २६३ । परमानन्द शास्त्री--अपभ्रंश भाषा के दो महाकाव्य और कविवर नयनन्दी, अनेकान्त वर्ष १०, किरण १०.
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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