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अपभ्रंश-साहित्य वाहन और राक्षस के युद्ध की तुलना स्त्री और पुरुष के मिथुन से की गई है
तो गज्जइं रण रह सुन्भिण्णइं, अभिट्टई णिव णिसियर सेणई। मिहुणइं जिह रोमंचिय गत्तई, मिहुणई जिह तरलाविय घेत्तई। मिहुणइं जिह उद्दीविय रोसई, मिहुणइं जिह धाविय मुह सोसइं। मिहुणइं जिह विरइय संबंधई, मिहुणइं जिह वर करण मयंघइं। मिहुणइं जिह विक्खित्ताहरणइं, मिहुणई जिह उच्चाइय चरणइं। मिहुणइं जिह आमेल्लिय सुसरई, मिहुणई जिह पुणु पुणु दर हसिरई। मिहुणइं जिह सेउल्लणि लाइइं, मिहुणइं जिह कड्ढिय कर वालई। मिहुणइं जिह आय वछयलई, मिहुणइं जिह मुछए तणु वियलई। पत्ता --
तोउल्ललइ चलइ खलइ, तसइ ल्हसइ णीससइ पणासइ ।
णिसियर वलु णिव साहणहो, णव बहु जेम ससज्मए दोसइ ॥ ९.४ निम्नलिखित उद्धरण में छन्द की गति देखिये
जुज्झ कोछरा तोसियछरा
णं भयावणा राम रावणा ढुक्क सम्मुहा मुक्क आउहा घाय घम्मिरा रत्त तिम्मिरा दो वि सुंदरा णाई मंदरा
कंप वज्जिया देव पुज्जिया ९.९ राजा और राक्षस दोनों रथ पर चढ़ युद्ध करते हैं। टन टन बजते घंटे और खनखन करती शृखला से चित्र सजीव हो उठा है
कंचण णिबद्धए, उब्भिय सुचितए धगधगगिय मणियरे, मंद किंकिणि सरे। मणजव पयट्टए, टण टणिय घंटए॥ धूव धूमाउले, गुमगुमिय अलिउले खण खणिय संखले, वहु वलण चंचले,
हिलि हिलिय हयवरे, एरिसे रहवरे। ९.११ इस प्रकार कवि के वसन्तोत्सव, उपवन विहार, सूर्यास्त आदि वणनों में उसका बाह्य-प्रकृति का निरीक्षण दिखाई देता है । अतः प्रकृति का निरीक्षण स्त्री-प्रकृति अंकन में दृष्टिगत होता है । निम्नलिखित वस्तु-छंदों में कवि ने स्त्री-प्रकृति का सुन्दर विश्लेषण किया है। कवि के विचार में अनेक तर्क, लक्षण, छंदालंकार, सिद्धान्त-शास्त्र आदि गंभीर ग्रन्थों के रहस्य को समझा जा सकता है । जीवन-मरण, शुभाशुभ कर्म, मंत्र, तंत्र, शकुन आदि का भी निर्धान्त ज्ञान संभव है । एक स्त्री-चरित को छोड़ कर सब कुछ जाना जा सकता है । क्रुद्ध सिंह, व्याघ्र, सर्प आदि के चित्त को समझा जा सकता है