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________________ अपभ्रंश-साहित्य से यम, शत्रु रूपी वृक्षों को उखाड़ने से वायु रूप था । ऐरावत की सूंड के समान प्रचंड भुजाएँ थीं इत्यादि। वर्णन प्राचीन संस्कृत परिपाटी के अनुकूल है कोई विशेषता नहीं। इसी प्रकार उज्जयिनी के राजा यशोधर का वर्णन (१.२३ में) कवि ने उल्लेखालंकार का आश्रय लेकर किया है। राजा के क्रीडोद्यान का वर्णन कवि ने निम्न शब्दों में किया हैजत्थ चूय कुसुम मंजरिया, सुय चंचू चुंबण जजरिया। हा सा मुहरत्तेण व रवद्धा, कहिं मि विडेण व वेसा लुखा। छप्पय छित्ता कोमल ललिया, वियसइ मालइ मउलिय कलिया। दसण फंसह रसयारी, मउउ को अ ण वहूमण हारी। वायंदोयण लोलासारो, तर साहाए हल्लइ मोरो। सोहइ घोलरि पिछ सहासो, णं वण. लच्छी चमर विलासो। जत्थ सरे पोसिय कारंडं, सरसं गव भिस किसलय खंडं। दिण्णं हंसेणं हंसीए, चंचू चंचू चुंबताए। फुल्लामोय वसेणं भग्गो, केयइ कामिणियाए लग्गो। खर कंटय गह णिन्भिण्णंगो, ण चलइ जत्थ खणं पि भुयंगो। जत्था सण्ण वयम्मि णिसण्णो, णारी वीणा रव हिय कण्णो। ण चरइ हरिणो दूां खंडं, 'ण गणइ पारद्धिय करकंडं। जत्य गंध विसएणं खविओ, जक्खी तणु परिमल वेहविओ। हत्यी परिअंचइ जग्गोह, फंसइ हत्येणं . पारोहं। संकेयत्यो जत्थ सुहई, सोऊणं मंजीरय सदं। अहमं तीए तीए सामी, एवं भणिउं गच्चइ कामी।' १.१२.१-१६ यद्यपि 'फुल्लामोद वसेणं' 'हत्थेणं' आदि में ण के स्थान पर छन्द पूर्ति के लिए णं का प्रयोग भाषा की दृष्टि से कुछ खटकता है तथापि क्रीडोद्यान के वैभवपूर्ण और स्वाभाविक वर्णन में कोई कमी नहीं। उस युग में राजाओं का जीवन विलासमय होता था । इतना ही नहीं कि उनके सिंहासन कनकमय रत्न निर्मित (कणयमय रयन विट्ठरि णिसण्णु २.१३.१) होते थे अपितु प्रतिहार भी (कणयमय दंड मंडिय कर २.१३.७) कनकमय दंड-मंडितकर होते थे। रस-रस की दृष्टि से न तो इस ग्रंथ में वीर रस की प्रधानता है और न शृंगार १. मुहरत्तेण--शुक या विट । रसयारी--रसकारी। भग्गो-वशीकृत । पार द्धिय-व्याव । खविओ--क्षपित, पीड़ित । वेहविओ--विह्वल । परिअंचइ--घूमता है। पारोहं--प्ररोह । संकेयत्यो--संकेतस्थ । सुहई--सुभत्र ।
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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