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________________ अपभ्रंश - खंडकाव्य (धार्मिक) रव विक्किरंति पुंडुच्छु दंड खंडई चरंति । ठेक्कारधीर जोहा विलिहिध गंदिणि सरीर । माहिसाई दहरमणुड्डाविय सारसाई । रतियाउ वहुअउ घरकामं गुत्तियाउ । पत्तियाउ जहं झीणउ विरहि तत्तियाउ । चकृखु सीमावड़ ण मुअइ को विजकृखु । पवासिएहि दहि कूरु खीरु घिउ देसिएहि । बालियाइ पाणिउ भिंगार पणालियाइ । पहिर्यावदु चंगउ दक्खालिवि वयण चंदु | धण्णइं चरंति ण हु पुणु तिणाई । जहि पाणि पसारइ मत्त हत्थि । ' ज० च० पृष्ठ १६ -- १७ शुकों का क्षेत्रों में चुगना, गौओं का इक्षु खंड खाते हुए विचरण करना, वृषभ का गर्जन और जीभ से गौ को चाटना, भैंसों का मंथर गति से चलना, प्रपापालिका बालिकाओं का पानी पिलाते-पिलाते अपना सुन्दर मुखचन्द्र दिखा कर पथिकों को लुभा लेना सब स्वाभाविक वर्णन है । जहिं गोउलाई पउ जहि वसह मुक्क जाह मंथर गमणई काहलियवंस संकेय कुडुंगण जहि हालिरूव णिवद्ध जिम्मs जहि एवहि पव पालियाइ जहि दितिए मोहिउ frय जहि चउ पयाइं तोसिय मणाई उज्जेणि णाम तर्हि णयरि अत्थि १४१ कवि ने राजाओं का और उनके वैभव पुर्ण प्रासादों का वर्णन भी उसी ठाठ-बाठ से किया है जैसा इसके अन्य ग्रंथों में मिलता है । इसी प्रकार (१.५ में) राजा मारिदत्त का वर्णन करता हुआ कवि कहता है- रूत्रेण काम कंतीए चंदु | पर दुमदलण बलेण वाउ | पच्चंत णिवइ मणि दिण्ण दाहू । सुसमत्य भडह गोहाण गोहु । सत्तित्तय दीहरच्छु । सुपसण्ण मुत्ति घणगहिर सदु । अर्थात् वह त्याग से कर्ण, वैभव से इन्द्र, रूप से काम, सौन्दर्य से चन्द्रमा, दंड देने चाएग कग्गु विहवेण इंदु, दंडे जमु दिण्ण पचंड घाउ, सुरकरि कर थोर पथंड बाहु, भसल उल णील धम्मिल्ल सोहु, गोउर कवाड अइ विउल वच्छु, लक्खण लक्खं किउ गुणसमुट्टु, पालणु ર १.५ १. लच्छि सहि-- लक्ष्मी सखी । केयार -- केदार । गोउलाई -- गोकुलानि, गौएँ । पउ -- पय । वसह -- वृषभ । दह -- हृद । काहलिय वंस -- ग्वाले से बजाई जाती बांसरी । गुत्तियाउ - - आसक्त । कुडुंगण -- कुड्यांगण, लतागृह । जिम्मइ -- जीमना । कूरु -- ओदन । पव पालियाइ - - प्रपा पालिका । पहिय विदु-- पथिक वृन्द । २. चाएण -- त्याग से । पयंड -- प्रचंड । णिवइ - - नृपति । भसल उल -- भ्रमर कुल । गोहान -- प्रोद्धा । गोहु -- पुरुष । दोहरच्छु -- दीर्घाक्ष |
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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