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________________ अपभ्रंश-साहित्य afa मार्मिक स्थलों पर भी भाव तीव्रता अभिव्यक्त नहीं कर सका है । कवि का उत्तरा - विलाप प्रसंग साधारण कोटि का है । निम्नलिखित द्रौपदी के केशाकर्षण प्रसंग में भी भावतीव्रता नहीं तं णिसुणेष्पिणु सासणेण, विद्दद्दयं पाव क्यायरेण । आयडिय केस घरेवि जाम, चिट्ठि कारिउ सव्वेंहि ताम । णं हरिणा सारंगि य बराय, जं जायारें णाइजि सहाय । णं धीवरेण मीणइ आहल्लि, णं मक्कडेण कोमलिय वल्लि । पउमणि लुंचिय मयमलेग, सिंहं वे (दो) वइ तेण धणुद्धरेण ॥ ७.१६ काव्य में पद-योजना प्रायः संस्कृत भाषा की शैली में दृष्टिगोचर होती है । जैसे १२६ ...... इक्वेसिर्फ जियय पज्जंक बेसम्मि, उवविव तहो पुरउ महि बीटि एममि । पुच्छेड़ दियसंतु मायंग वर गामि । कल्ला तं कासि कहो तणिय वरधूय, कि एड ए कासि बहु विजय संभूय । जिव पुच्छिया सावि करकमल सजाए, सहि भणिय ता ताए पछन्न वायाए । ४.७ जहां इस प्रकार की शैली नहीं वहां पद योजना अधिक सरल और प्रभावोत्पादक प्रतीत होती है । जैसे— किं रज्जें अरियण संकिएन, किं सग्र्गे जत्थ पुमागमेण । किं विहवें उप्पाइम मएण, किं छतं छाइय सिव पहेण । किं चमरें उद्घाविय गुण, कि एहरणेहि दद्दासिएण । असहायहि कि सज्जन जणेण, कि तारुणं जर संगण | १२.१५ भाषा में स्थान-स्थान पर सुभाषितों और वाग्वाराओं का प्रयोग भी मिलता है-"छण इंदहो भुक्कइ सारमेउ, किं करइ तासु ववगय विवेउ ॥ "स किउ कम्मु को अणुहवइ, णिय किउ सुहु कुहु अग्गइ सरइ ।” "रवि पुरउ कवणु ससि तारयाई” "असहायहो होइ ण कन्ज सिद्धि" ४. १ ८.१ १०.८ १०.१६ कवि ने स्वय स्वीकार किया है कि काव्य में उसने पद्धडिया बंध का प्रयोग किया है ।' किन्तु पद्धडिया के अतिरिक्त कडवकों के आरम्भ में दुवई, आरणाल, जंभेट्टिय १. इहु हरिवंसु सत्थु मइ अलिउ, कुरु वंसहो समेउणउ पढमहि पर्याउ वीर जिणेंदें, सेणिय रायहो कुवलइ गोयमेण पुणु किय सोहम्में, जंबू सामें विह सामें । गंदि मित्त अवरज्जिय णाम, गोवद्धणेण सुभद्दवाहें । परंपराए अणुलग्गउ, आइरियहं मुहाउ आवग्गउ । संखेवसुतअवहारिउ, मुणि जस कित्ति महिहि वित्थारिउ । छंदें सुमनोहरु, भवियण जण मण सवण सहकरु । १३.१९ एम सुणि पद्धडिया रखिउ । चंदें ।
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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