SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 145
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपभ्रंश-महाकाव्य १२७ खंड, वस्तुबंध, हेला आदि छन्दों का भी प्रयोग किया गया है । सन्धियों के प्रारम्भ में दिउठा की मंगलकामना के लिये शार्दूलविक्रीडित, वसन्त तिलका, अनुष्टुप् गाथा आदि छन्दों का भी प्रयोग मिलता है । हरिवंश पुराण इसकी हस्तलिखित प्रति आमेर शास्त्र भंडार में विद्यमान है। श्रुतकीर्ति ने प्राचीन कथा का ही इसमें वर्णन किया है । कवि की एक दूसरी कृति परमेष्ठि प्रकाश सार भी हस्तलिखित रूप में उपलब्ध है । इसका समय कृतिकार ने वि. सं. १५५३ दिया है । १५ ५३ दह पण सय तेवण गय वासई पुण विक्कम णिव सर्वच्छरहे । तह सावण मासहु गुर पंचमि सहूं, गं पुण्ण तय सहसतहें ॥ ७.७४ अतः कवि का समय वि. सं. की १६ वीं शताब्दी का मध्य भाग माना जा सकता है । कवि ने ४४ संधियों में महाभारत की कथा का वर्णन किया है। पिकाओं में कवि ने इस ग्रंथ को महाकाव्य कहा है । ' संधि की ग्रंथ का आरम्भ निम्नलिखित पद्य से होता है । ॐ जय नम सिद्धेभ्यः । सिसिइणवोमं स तं हरि वंसई । पाव तिमिरहर विमल यरि । गुण गण जस भूतिय, तुरय अदूसिय, सुव्वय गेमिय हलिय हरि ॥ गाथा- सुरवइ तिरोडरयणं, किरणंव पवाहसित्त जह चलणं । पण विवि तह परम जिणं, हरिवंस कयत्तणं वृधे ॥ हरिवंश पुराण का कवि ने कमल रूप में वर्णन किया है हरिवंसु पयोरुह अतरवण्णु, इह भरह खित्त सरवरउ वण्णु । - १०.१ आत्म विनय और सरस्वती वन्दन से कथा आरम्भ होती है। मंगलाचरण के द्वारा ग्रंथ की समाप्ति होती है । जिन अपभ्रंश महाकाव्यों का विवेचन यहाँ प्रस्तुत किया गया है । निस्संदेह उनके अतिरिक्त अनेक महाकाव्य जैन भंडारों में गुप्त पड़े होंगे । अनेक प्रकाश में आ चुके हैं। किन्तु अभी तक प्रकाशित नहीं हो सके । मुख्य रूप से महाकाव्यों के आधार पर १. इय हरिवंशपुराणे मगहरसरायपुरिसगुणालंकार कल्लाणे तिहुवणकित्तिसिस्स असुद्द कत्ति महाकव्त्रु विरयंतो णाम पढमो संद्धी परिछेक सम्मातो ।
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy