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________________ ११४ अपभ्रंश-साहित्य के के न गए महि महु डिल्ली ढिल्लाय दोह होहाय । विहुरंत जासु कित्ती तं गया नहि गया हुंति ॥' कुछ हस्तलिखित प्रतियों में शब्द-रूप भिन्न हैं । तो भी इन पद्यों से भी यही प्रकट होता है कि ये पद्य उत्तरकालीन अपभ्रंश के कारण तत्कालीन प्रान्तीय भाषाओं के प्रभाव से प्रभावित अपभ्रंश रूप ही हैं। २. रासो की शब्द-योजना और अन्य अपभ्रंश काव्यों की शब्द-योजना में इतना . साम्य है कि उन्हें एक ही भाषा का मानना असंगत नहीं। अपभ्रंश काव्यों में अनुरणनात्मक या ध्वन्यात्मक शब्दों का प्रयोग अपभ्रंश कवियों की विशेषता रही है। इस प्रकार की शब्द-योजना से अर्थावबोव का प्रयत्न अपभ्रंश कवियों ने अपने काव्यों में किया है । पृथ्वीराज रासो में भी यह प्रवृत्ति उदप्र रूप से दिखाई देती है । उदाहरण के लिए निम्नलिखित युद्धस्थल का वर्णन देख सकते हैं हहकंत कूदन्त नंचं कमंध। कनकंत बजंत कुटुंत संघ ॥ लहक्कंत लूटंत तूटत भूमं । भुकंते धुकंते दोऊ वश्य झूमं ॥ दडक्कत दीसंत पीसंत दंतं ।। पद्य सं० २११० करकंड चरिउ के निम्नलिखित युद्धवर्णन में ध्वन्यात्मक शब्दों की योजना देखिए वज्जति वज्जाइं सज्जति सेण्णाई। कुंताई भज्जति कुंजरई गज्जंति । गत्ताई तुटुंति मुंडाई फुटुंति । हड्डाई मोडंति गीवाइं तोडंति । क. च. ३. १५ इसी प्रकार पुष्पदन्त के जसहर चरिउ का एक उद्धरण देखिये तोडइ तडत्ति तणु बंधणई मोडइ कडत्ति हड्डुइं घणई। फाडइ चडति चम्मई चलई घुट्टइ घडत्ति सोणिय जलई । ज. च. २. ३७. ३-४ १. राजस्थान भारती भाग १, अंक १, में डा० दशरथ शर्मा और प्रो० मीनाराम रंगा के लेख से उद्धृत । रासो विषयक ऐतिहासिक सामग्री के लिए लेखक डा० दशरथ शर्मा का आभारी है। २. रासो के उद्धरणों के निर्देश के लिए लेखक डा० ओमप्रकाश का कृतज्ञ है।
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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