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अपभ्रंश-महाकाव्य
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जाता है'--
एक बान पहुमी नरेल कैमासह मुक्यौ ॥ उर उप्पर थरहों वीर कष्वंतर चुक्यौ ॥ बियो बान संधान हन्यौ सोमेसर नन्दन ॥ गाढी करि निग्रह्यौ षनिव गड्यौ संभरि धन ॥ थल छोरि न जाइ अभागरौ गाड्यौ गुनगहि अग्गरौ॥ इम जंपै चंद बरहिया कहा निघट्ट इय प्रलो॥
पृथ्वी० रासो पृष्ठ १४९६, पद्य २३६ अगह मगह दाहिमो देव रिपुराइ षयंकर । कूरमंत जिन करौ मिले जम्बू बै जंगर । मो सहनामा सुनौ एह परमारथ · सुज्झ॥ अष्र्ष चंद बिरद्द बियो कोइ एह न बुझ॥ प्रथिराज सुनवि संभरि धनी इह संभलि संभारि रिस । कमास बलिष्ठ बसोठ बिन म्लेच्छ बंध बंध्यौ मरिस ॥
पृथ्वी० रासो, पृष्ठ २१८२, पद्य ४७५ असिय लष्ष तोषार सजड पष्वर सायद्दल। सहस हस्ति चवसट्टि गरुअ गज्जंत महाबल ॥ पंचकोटि पाइक्क सुफर पारक्क धनुद्धर ।
जुध जुधान बर बीर तोन बंधन सद्धनभर ॥ छत्तीस सहस रन नाइबौ विही निम्मान ऐसो कियो। चंद राइ कविचंद कहि उदधि बुड्डि के प्रर.लियो ।
पृथ्वी० रासो, पृ० २५०२, पद्य २१६ पृथ्वीराज रासो के लघुरूप बीकानेर की प्रति से कुछ पद्य नीचे दिए जाते हैं
कलि अछ पथ कनउज्ज राउ । सत सील रत धर धर्म चाउ । पर अछ भूमि हय गय अनग्ग । परठव्या पंग राजसूजग्ग ॥
१. पृष्ठ संख्या और पद्य संख्या नागरी प्रचारिणी सभा काशी के संस्करण के अनुसार है।