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________________ ११२ अपभ्रंश-साहित्य इक् बाणु पहुवी जु पद्मं कइंबासह मुक्कओ । भरि खsess घीर कक्वंतरि चुक्कउ । बीअं करि संधीउं भंमइ सुमेसर नंदण ! एह सुगडि दाहिमओ खणइ खुद्दइ सइंभरि वणु । फुड छंडि न जाइ इहु लुब्भिउ वारइ पलकउ खल गुलह, नं जाणउं चंद बलद्दिउ कि न वि छुट्टइ इह फलह ॥ अगहु म गहि दाहिमओ रिपुराय खयंकर, कूड मंत्र मम ठवओ एहु जं बूय मिलि जग्गरु । सहनामा सिक्खवउं जइ सिक्खिविडं बुज्झइं । जंपइ चंद बलिदु मज्झ परमक्खर पहु पहुविराय सहभरि धणी सयंभरि सउणइ कइंबास विस विट्ठविणु मच्छि बंधि बद्धओ पृ० ८६, पद्य २७५ सुज्झइ । संभरिति, मरिसि ॥ त्रिणिह लक्ष तुसार सबल पाषरीअई जसु हय, चऊदस मयमत्त दंति गज्जंति महामय । बीस लक्ख पायक्क सफर फारक्क धणुद्धर, ल्हूसडु अरु बलुयान संख कु जाणइ तांह पर । छत्तीस लक्ष नराहिवइ बिहि बिनडिओ हो किम भयउ, जइचन्द न जाणउ जल्हुकइ गयउ कि मूउ कि घरि गयउ ॥ चाहमान गर्जनक शाकसैन्य पृ० ८६, पद्य २७६ सुर त्राणः मशीति ये पद्य ' परिवर्तित रूप में आधुनिक रासो के अपने प्राचीन और शुद्ध रूप में रासो के मूलरूप में होंगे की भाषों अपभ्रंश ही होगी ऐसा इन पद्यों को देखने से प्रतीत होता है । इन पद्यों का रूप जो पृथ्वीराज रासो के वृहत् रूप में मिलता है नीचे दिया पृष्ठ ८८, पद्य २८७ संस्करणों में मिलते हैं । ये और उस रासो के मूलरूप १. जिन प्रबन्धों में से ये पद्य लिये गये हैं उनमें से कुछ संस्कृत शब्द नीचे दिए जाते हैं चौहान गजनी शकसेना सुल्तान मस्जिद
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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