________________
अपभ्रंश-महाकाव्य
१०३
अवल कवि द्वारा १२२ सन्धियों एवं १८ हजार पद्यों में विरचित हरिवंश पुराण का निर्देश किया था। कैटेलॉग आफ संस्कृत एंड प्राकृत मेनुस्क्रिप्ट्स इन दि सी० पी० एंड बरार, नामपुर सन् १९२६ में (पृ० ७६५ पर) भी इस ग्रंथ का कुछ उल्लेख मिलता है। श्री कस्तूरचन्द कासलीवाल जी की कृपा से श्री दिगम्बर जैन मन्दिर बडा तेरह पंथियों का जयपुर में वर्तमान इस महाकाव्य की एक हस्तलिखित प्रति हमें देखने को मिली । उसी के आधार पर यहां इस महाकाव्य का कुछ परिचय दिया जाता है।
धवल कवि के पिता का नाम सूर और माता का नाम केसुल्ल था। इनके गुरु का नाम अंबसेन था। धवल ब्राह्मणकुल में उत्पन्न हुए किन्तु अन्त में जैन धर्मावलम्बी हो गये थे।' कवि द्वारा निर्दिष्ट उल्लेखों के आधार पर कवि का समय १० वीं-११वीं शताब्दी के अन्दर माना गया है। कवि ने ग्रन्थ के आरम्भ में अनेक कवियों और उनके काव्यों का उल्लेख किया है ।२
१.
मई विप्पहु सूरहु गंदणेण, केसुल्लउ वरि संभवहुएण।
कुतित्थ कुषम्म विरत्तएण, णामुज्जलु पयडु वहंतएण। हरिवंसु सुयलु सुललिय पएहि, मई विरयउ सुटु सुहावरहि । सिरि अंवसेण गुरवेण जे (म)ण, वक्खारणि किड अणुकमेणतेण ॥ १. ५ कवि चक्कवइ पुखि गुणवंतउ धीरसेणु हुंतउ पयवंतउ। पुणु सम्मत्तहं धम्म सुरंगउ जेण पमाण गंयु किउ चंग। देवगंदि बहु गुण असभूसिउ जें वायरणु जिणितु प्रयासिउ। वज्जसूउ सुपसिद्धउ मुणिवर में णयमाणुगंयु किउ सुबर। मुणि महसेणु सुलोयणु जेणवि पउमचरिउ मुणि रविसेणेण वि। जिणसेणे हरिवंसु पवित्तुवि जडिल मुणोण वरंगचरित्तु वि। विणयरसेणे चरिउ अणंगहु पउमसेण आयरियइ पसंगहु । अंघसेणु में अमियाराहणु विरइय दोस विवज्जिय सोहणु । जिण चंदप्पह चरिउ मणोहरु पावरहिउ धणमत्तु ससुंदरु । अण्णमि किय इंमाइं तुह पुत्तइ विण्हसेण रिसहेण चरितई । सोहणंदि गुरवें अणुपेहा गरदेवेणवकांतु सुहा। सिद्धसेण जे गए आगउ भविय विणोउ पयासिउ चेंगउ । रामणदि जे विविह पहाणा जिण सासणि बहु रइय कहाणा । असमु महाकइ जेसुमणोहरु वीर जिणिदु चरिउ किउ सुदर। कित्तिय कहमि सुकइ गुण प्रायर गेय कव्व जहि विरइय सुंदर । सणकुमार में विरयउ मणहरु कय गोविंद पवर सेयंवरु । तह बक्खइ जिणरक्खिय सावउ में जय धवलु भुवणि विक्खाइड । सालिहद्द. कि कइ जीय उदेंदउ लोयइ चहुमुहुँ दोणु पसिद्धउ ।