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________________ १०२ अपभ्रंश-साहित्य "अहो सरीर बाउ जो भावइ तं तासइ बलेवि संतावइ" ६. १०.३ जो किसी दूसरे प्राणी के प्रति पापाचरण का विचार करता है वह पाप पलटकर उसे ही पीड़ित कर देता है। "अहो चंदही जोन्ह कि मइलज्जइदूरि हुअ" २१. ३.५७ क्या दूर होने पर चन्द्र की चन्द्रिका मलिन की जा सकती है ? जहा जेण वत्तं तहा तेण पत्तं इमं सुच्चए सिट्ठलोएण बुतं । सु पायन्नवा कोट्वा जत्त माली कहं सो नरो पावए तत्थ साली ॥ पृष्ठ ८४ जो जैसा देता है वैसा ही पाता है यह शिष्ट लोगों ने सच कहा है । जो माली कोदव बोएगा वह शाली कहाँ से प्राप्त कर सकता है ? इस ग्रंथ की भाषा में बहुत से शब्द इस प्रकार के प्रयुक्त हुए हैं जो प्राचीन हिन्दी कविता में यत्र तत्र दिखाई दे जाते हैं और कुछ तो वर्तमान हिन्दी में सरलता से खप सकते हैं। ' छन्द --- ग्रंथ में कवि ने वर्णवृत्त और मात्रिक वृत्त दोनों के छन्दों का प्रयोग किया है किन्तु अधिकता मात्रिक वृत्तों की है । वर्णवृत्तों में भुजंगप्रयात, लक्ष्मीधर, मंदार, चामर, शंखनारी आदि मुख्य हैं । मात्रिक वृत्तों में पज्झटिका अडिल्ला, दुवई, काव्य, प्लवंगम, सिहाँवलोकन, कलहंस, गाथा मुख्य हैं । " विचारधारा -जन्मान्तर और कर्म सिद्धान्त पर कवि को पूरा विश्वास है ( ३. १२. १२ ) । शगुनों में लोग विश्वास करते हैं। प्रेमी के दूरदेशस्थ होने पर कौए को उड़ा कर उसके समाचार जानने का भाव पृ० ३९ में मिलता है । लोग अलौकिक घटनाओं में विश्वास करते हैं । कथा में बहु-विवाह के प्रति अनास्था प्रकट की गई है। पोयणपुर के राजा का चरित्र तत्कालीन सामन्तों की विचारधारा का प्रतीक है । हरिवंश पुराण प्रो० हीरालाल जैन ने "इलाहाबाद यूनिवर्सिटी स्टडीज " भाग १, सन् १९२५ में सालि १. चाह, चुति-- चुनना, इंक्यि संच, छउ रस रसोइ ( पृ० ४७), बालि सालणय पियारउ ( चावल दाल और सब्जी) पृ० ४७, पच्छिल पहरि ( पृ० ५९ ), तहु आगमो चाहहो ( पृ० ५९) उसे आना चाहिए, राणी, तज्जइ-तजना, चडिड बिमाणु ( पृ०६३), तुरंतउ ( पृ० ६४), जं बित्तउ - जो बीता ( पृ० ६५), पप्पड़ापापड ( पृ० ८४), बिहाणि - विहान -- प्रातःकाल ( पृ० ९२ ) । २. छन्दों के लक्षण के लिए देखिये भविसयत्त कहा की भूमिका ।
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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