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________________ १.. अपभ्रंश-साहित्य प्रकृति वर्णन-काव्य में अनेक सुन्दर प्राकृतिक वर्णन हैं।' कवि ने प्रकृति क वर्णन आलम्बन रूप में किया है । गहन वन का वर्णन करसा हुआ कवि कहता है __ "दिसा मंडलं जत्थ णाई अलक्खं पहायं पि जाणिज्जइ जम्मि दुक्खं" वन की गहनता से जहाँ दिशा मंडल अलक्ष्य था। जहाँ यह भी कठिनता से प्रतीत होता था कि यह प्रभात है। भाषा-ग्रन्थ की भाषा साहित्यिक अपभ्रंश है। शब्दों में य श्रुति और व श्रुति का प्रयोग प्रचुरता से किया गया है (जैसे कलकल = कलयल, दूत = दूव)। विशेषणं विशेष्य के समान बचन के नियम का व्यत्यास भी अम्हहं वसंतहो ( ३. ११. ७ ) में दिखाई देता है। अलंकार-उपमा, उत्प्रेक्षा, स्वभावोक्ति, विरोधाभास आदि अलंकारों का प्रयोग स्थान-स्थान पर दिखाई देता है। उपमा में मृत झौर अमूर्त दोनों रूपों में उपमान का प्रयोग किया गया है। दिक्खइ णिग्गयाउ गयसालउ णं कुलतियउ विणासियसीलउ। पिक्खइ तुरय वलत्थ पएसई पत्थण भंगाइ व विगयासई॥ ४.१०. ४. अर्थात् उसने गजरहित गजशालाओं को देखा-वे शीलरहित कुलीन स्त्रियों के समान प्रतीत हुई। अश्वरहित अश्वशालायें ऐसी दिखाई दीं जैसे आशारहित भग्न प्रार्थनायें। नारी सौन्दर्य का वर्णन करता हुआ कवि कहता है''णं वम्मह भल्लि विषणसील जुवाण जणि" ५. ७. ९ अर्थात् वह सुन्दरी युवकों के हृदयों को बींधने के लिए कामदेव के भाले के समान थी। उपमा का प्रयोग कवि ने केवलमात्र अलंकार प्रदर्शन के लिए न कर गुण और क्रिया की तीव्रता के लिए किया है । इस उपमा से प्रतीत होता है कि वह सुन्दरी अत्यधिक आकर्षणशील थी। उपमा का प्रयोग कवि ने संस्कृत में बाण के ढंग पर भी किया है। ऐसे स्थलों में शब्दगतसाम्य के अतिरिक्त अन्य कोई साम्य दो वस्तुओं में नहीं दिखाई देता। उदाहरणार्थ दिढ बंधई जिह मल्लरगणाइ णिल्लोहई जिह मणिवर मणाइ। णिबिभिण्णइं जिह सज्जणहियाई अकियत्थई जिह दुज्जणकियाई॥ ___३.२३.१. वहां वाहन अर्थात् नौकाएँ मुनिवरों के मन के समान णिल्लोह-लोहरहित ४. भवि० क० ३. २४. ५ में अरण्य का वर्णन, ४. ३. १ में गहन वन का वर्णन, ४. ४.३ में सन्ध्या का वर्णन, ८. ९. १० में वसन्त का वर्णन ।
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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