________________
अपभ्रंश-महाकाव्य
रस--कथा में तीन खंड हैं जिनका ऊपर निर्देश किया जा चुका है। तीनों खंड प्रायः अपने आप में पूर्ण हैं। प्रथम खंड में शृङ्गार रस है, द्वितीय में वीर रस और तृतीय में शान्त रस ।प्रतीत होता है कि तीनों रसों के विचार से ही कवि ने तीनों संतों की योजना की है। ___कमलश्री की शोभा के वर्णन में कवि ने (भ० क० पृष्ठ ५ पर) नारी के अंग सौन्दर्य के साथ उसकी धार्मिक भावना की ओर भी संकेत किया है। उसके अनुपम सौन्दर्य और सौभाग्य को देख कर कामदेव भी खो जाता है। "सोहग्गे मयरद्धउ खोहइ" इस एक वाक्य में ही कवि ने उसके अतिशय सौन्दर्य और सौभाग्य को अंकित कर दिया। ___एक और स्थल (भ० क० पृष्ठ २३-३३) पर भी कवि ने नारी के सौन्दर्य को अंकित किया है। नखशिखवर्णन प्राचीन परंपरा के अनुकूल ही है। कवि की दृष्टि बाह्य सौंदर्य पर ही टिकी रही। उसके आन्तरिक सौंदर्य की ओर कवि का ध्यान नहीं गया । सुमित्रा का वर्णन करता हुआ कवि कहता है मानो वह लावण्य जल में तिर रही थी (भ० क० १५. १. ७, पृष्ठ १०६) । इस एक वाक्य से कवि ने उसके चंचल सौंदर्य का चित्र खड़ा कर दिया है।
कथा के द्वितीय खंड में वीर रस को कवि ने अंकित किया है। गजपुर और पोयणपुर के राजाओं का वर्णन करता हुआ कवि कहता है
तो हरि खर खुरग्ग संघटि छाइउ रणु अतोरणे। णं भडमच्छरग्गि संधुक्कण धूम तमंवयारणे॥
भ० क० पृष्ठ १०२-१०३ अर्थात् घोड़ों के तीक्ष्ण खुराणों के संघर्षण से उद्भूत रज से तोरण रहित युद्धभूमि बाछन्न हो गई । वह रज मानो योद्धाओं की क्रोधाग्नि से उत्पन्न धुआं हो । अर-वर्णन में सजीवता है।
कया का तृतीय खंड शान्त रस से पूर्ण है। संसार की असारता दिखाता हुआ कवि कहता है।
अहो नरिंद संसारि असारइ तक्षणि दिट्ठपणट्ठ वियारइ । पाइवि मणुअजम्मु जण वल्लहु बहुभव कोडि सहासि दुल्लहु । जो अणुबंधु करइ रइ लंपडु तहो परलोए पुणुवि गउ संकडु । जइ वल्लह विओउ नउ दोसइ जइ जोव्वणु जराए न विणासइ । जइ ऊसरइ कयावि न संपय पिम्मविलास होति जइ सासय । तो मिल्लिवि सुवण्णमणिरयणई मुणिवर कि चरंति तवचरणइं। एम एउ परियाणिवि बुज्झहि जाणतो वि तो वि मं मुज्महि ।
१८. १३. १