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________________ ९८ अपभ्रंश-साहित्य है। सरूपा में सपत्नी-सुलभ ईर्ष्या के साथ स्त्री-सुलभ दया का भी कवि ने चित्र अंकित किया है । इन विरोधी प्रवृत्ति वाले पात्रों के समावेश से कवि ने नायक और प्रतिनायकादि पात्र के प्रयोग का प्रयत्न किया है। पात्रों के स्वभावानुकूल उनके जीवन का विकास दिखाई देता है । वस्तु वर्णन--कवि ने जिन वस्तुओं का वर्णन किया है उनमें उसका हृदय साथ देता है । अतएव ये वर्णन सरस और सुन्दर हैं। देशों और नगरों का वर्णत करता हुआ कवि उनके कृत्रिम आवरणों से ही आकृष्ट न होकर उनके स्वाभाविक, प्राकृत अलंकरणों से भी मुग्ध होता है । कुरु जांगल देश की समृद्धि के साथ-साथ कवि वहाँ के कमल प्रभा से ताम्रवर्ण एवं कारंड-हंस-वकादि चुम्बित सरोवरों को और इक्षु रस पान करने वालों को भी नहीं भूलता।' गजपुर का वर्णन करता हुआ कवि उसके सौन्दर्य से आकृष्ट हो कहता है तहिं गयउरु णा पट्टणु जण जणियच्छरिउ। णं गयणु मुएवि सग्ग खंडु महि अवयरिउ ॥ भ० क० १.५. अर्थात् वहाँ गजपुर नाम का नगर है जिसने मनुष्यों को आश्चर्य में डाल दिया है। मानो गगन को छोड़ कर स्वर्ग का एक खंड पृथ्वी पर उतर आया हो। कवि ने थोड़े से शब्दों में गंजपुर की समृद्धि और सुन्दरता को अभिव्यक्त कर दिया है। कवि के इन विचारों में वाल्मीकि रामायण के लंका वर्णन एवं कालिदास के मेघदूत मैं उज्जयिनी वर्णन का आभास स्पष्टरूप से दिखाई देता है। स्वयंभू के हरिवंश पुराण में विराट नगर के और पुष्पदंत के महापुराण में पोयण नगर के वर्णन में भी यही कल्पना की गई है। - - . . . . . . . . १. जहिं सरई कमल पह तंबिराई कारंड हंस वय चुंबिराई। .. ."पुंडुच्छरसई लोलइ पियंति ॥ भवि० क० पृष्ठ २ २. महीतले स्वर्गमिव प्रकीर्णम् । वा० रामा० ५. ७. ६. स्वल्पीभूते सुचरितफले स्वगिणां गां गतानाम् । शेषैः पुण्यहूं तमिव दिवः कान्तिमत् खंडमेकम् ॥ मेघदूत १. ३०. - ३. घता-पट्टणु पइसरिय जं धवल-घरालंकरियउ । केण वि कारणेग णं सग्ग खंड ओयरियउ॥ रिट्ठ० च० २८. ४. तहि पोयण णामु णयह अत्थि वित्थिण्ण। सुर लोएं गाइ धरिणिहि पाहुडु दिण्णउं॥ म० पु० ९२. २. ११-१२
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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